ललिता घाट पर बिराजती हैं माता राजराजेश्वरी ललिता गौरी

-चैत्र नवरात्र में दर्शन का विशेष महत्व, देवताओं की मनोकामना पूर्ण करने के लिए गौरी स्वरूप में प्रकट हुईं

वाराणसी, 06 अक्टूबर(हि.स.)। शारदीय नवरात्र में जिले के सभी छोटे-बड़े देवी मंदिरों में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। नौ दिनों में नव दुर्गा स्वरूप के दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु दिन विशेष के लिए निर्धारित स्वरूप के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। नवरात्र के छठवें दिन संकठा घाट पर आत्माविश्वेश्वर मंदिर परिसर स्थित मां कात्यायनी देवी और गौरी स्वरूप में ललिताघाट स्थित ललिता गौरी के दरबार में श्रद्धालु दर्शन पूजन करेंगे।

पौराणिक काशी की परंपरा और संस्कृति में नव दुर्गा ही नहीं बल्कि नौ गौरी की भी विशेष मान्यता है। नौ गौरी में शामिल ललिता देवी को समर्पित ललिता घाट की अपनी विशिष्ट पहचान और शास्त्रों में मान्यता है। नवगौरी के छठवें स्वरूप में मां ललिता गौरी देवताओं की मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रकट हुईं। माना जाता है कि माता के इस अद्भुत रूप के दर्शन मात्र से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। ललिता गौरी मां पार्वती महा त्रिपुर सुंदरी का ही अवतार हैं। मान्यता है कि मां ललिता गौरी के मंदिर में जो मनोकामना मांगी जाए, वह ज़रूर पूरी होती है। मां ललिता देवी को मां पार्वती का तीसरा स्वरूप माना जाता हैं। मां ललिता देवी अपने भक्तों के अकाल मृत्यु का भय का नाश करती है। चैत्र नवरात्र में छठवें दिन मां ललिता गौरी की खास पूजा अर्चना की जाती है। ललिता गौरी मंदिर का निर्माण नेपाल के राजा राणा बहादुर शाह ने सन् 1806 में शुरू करवाया। उनकी हत्या होने पर निर्माण कार्य बीच में ही रुक गया। जिसे बाद में उनके बेटे गिरबन युद्धा बिक्रम शाह ने 1843 में मंदिर का निर्माण पूरा कराया। मंदिर निर्माण में 30 साल का समय लगा। यह मंदिर हिन्दू मंदिर वास्तुकला के आधार पर निर्माण किया गया है।

ललिता घाट को भी नेपाल नरेश ने बनवाया था

नौ गौरी में शामिल मां ललिता गौरी को समर्पित ललिता घाट की अपनी विशिष्ट पहचान और शास्त्रों में मान्यता है। घाट से निकास मार्ग के सम्मुख ललिता गौरी का प्राचीन मंदिर है। जानकार बताते हैं कि ललिता घाट स्थित मंदिर पतित पावनी मां गंगा के सम्मुख होने की वजह से इसे ललिता तीर्थ की मान्यता है। वर्तमान में श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर गंगा द्वार का दिव्य भव्य अलौकिक परिसर ललिता घाट पर ही अपनी अद्भुत छटा बिखेर रहा है। शहर के पुराने वाशिंदे बताते हैं कि नेपाल नरेश ने मंदिर में आस्था की वजह से घाट को पक्का करवाया था। तब से घाट का कई बार जीर्णोद्धार हो चुका है। ललिता घाट परिक्षेत्र में अन्य प्रमुख मंदिर जैसे समराजेश्वर, सूर्य, गंगादित्य भी काफी प्राचीन माने जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार ऊर्जा के केंद्र सूर्य को समर्पित काशी के द्वादश आदित्यों में यहां स्थापित गंगादित्य को प्रमुख स्थान दिया गया है। वहीं, नेपाली समाज की ओर से लकड़ी का बना हुआ समराजेश्वर मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर का प्रतीक माने जाने की वजह से नेपाली मंदिर भी कहलाता है। नेपाल से प्राचीन संबंधों को दर्शाता पास ही नेपाल नरेश के प्रयासों से लकड़ी से बनी नेपाली कोठी भी है। घाट पर ही सिद्धगिरि एवं उमरावगिरि मठ भी श्रद्धा और आस्था का केंद्र है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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