पटना, 06 दिसंबर (हि.स.)। बिहार में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए फ्लड-प्लेन जोनिंग अपनाने की संभावनाओं और चुनौतियों से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए आज एक महत्वपूर्ण बैठक मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा की अध्यक्षता में हुई।
बैठक में जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव संतोष कुमार मल्ल ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से फ्लड-प्लेन जोनिंग से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं की विस्तार से जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने फ्लड-प्लेन जोनिंग को प्रचारित किया है। इसमें बाढ़ की प्रकृति और आवृत्ति के अनुसार विभिन्न नदियों की बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों का वर्गीकरण और उनके उपयोग की सीमा तय की गई है। उन्होंने कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने फ्लड-प्लेन जोनिंग को बाढ़ प्रबंधन के लिए एक प्रभावी गैर-संरचनात्मक उपाय माना है।
बैठक में प्रधान सचिव संतोष कुमार मल्ल ने केंद्र सरकार के जरिए फ्लड-प्लेन जोनिंग के संबंध में उपलब्ध कराये गये ‘तकनीकी दिशा-निर्देशों के प्रारूप’ के अनुरूप बिहार में बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में होने वाले स्वीकृत और प्रतिबंधित विकास कार्यों तथा बिहार की परिस्थितियों के अनुरूप उसके प्रभाव की विस्तार से जानकारी दी।
उन्होंने बिहार में इसे लागू करने में पेश आने वाली संभावित चुनौतियों की विस्तृत चर्चा की, जिस पर बैठक में विचार-विमर्श किया गया।
मुख्य सचिव अमृतलाल मीणा ने इस संबंध में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी से विस्तृत अध्ययन कराने और केंद्र सरकार से उपलब्ध कराये गये ‘तकनीकी दिशा-निर्देशों के प्रारूप’ पर राज्य सरकार का मंतव्य उपलब्ध कराने के निर्देश दिये।
उल्लेखनीय है कि फ्लड-प्लेन जोनिंग बाढ़ संभावित क्षेत्रों के प्रबंधन की एक प्रक्रिया है, जिसके तहत बाढ़ के जोखिम को कम करने और इन क्षेत्रों के सतत विकास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अलग-अलग क्षेत्रों का निर्धारण किया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य उन क्षेत्रों का वर्गीकरण करना है, जो अलग-अलग स्तर की बाढ़ की आशंका या संभावना से प्रभावित हो सकते हैं। उन क्षेत्रों में विकास कार्यों की प्रकृति निर्धारित की जाती हैं, ताकि बाढ़ आने पर नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।
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हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद चौधरी