राष्ट्र के ताने-बाने को नुकसान पहुंचाती हैं गलत सूचना और सनसनीखेज बातें : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली, 5 अक्टूबर (हि.स.)। गलत सूचना, सनसनीखेज और राष्ट्र-विरोधी नेरेटिव से उत्पन्न खतरों पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मीडिया से इन खतरों का मुकाबला करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि झूठे नेरेटिव और सनसनीखेज बातें भले ही दिलचस्प हों, लेकिन वे देश के ताने-बाने को नुकसान पहुंचाती हैं। मीडिया को इन ताकतों को बेअसर करना चाहिए और हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने शनिवार को नई दिल्ली में प्रतिदिन मीडिया नेटवर्क द्वारा आयोजित ‘कॉन्क्लेव 2024’ में राष्ट्र निर्माण में मीडिया की भूमिका पर जोर दिया। धनखड़ ने सरकार की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के परिवर्तनकारी प्रभाव और राष्ट्रीय नेरेटिव को आकार देने में मीडिया के महत्व पर भी प्रकाश डाला।

धनखड़ ने मीडिया से पूर्वोत्तर के लिए राजदूत के रूप में काम करने और इसकी पर्यटन क्षमता और विकासात्मक प्रगति को बढ़ावा देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, मीडिया जनता को सूचित करने और दिमाग को प्रज्वलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आपकी कहानियां विकास के लिए शक्तिशाली उपकरण के रूप में काम कर सकती हैं, जो हमारे विविध क्षेत्रों में मौजूद अद्वितीय अवसरों पर प्रकाश डालती हैं।

उपराष्ट्रपति ने तेजी से बढ़ते तकनीकी व्यवधान के दौर में जिम्मेदार मीडिया की जरूरत पर भी जोर दिया। उन्होंने सार्वजनिक संवाद की अखंडता को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, संपादकीय क्षेत्र को जनता को सूचित और संवेदनशील बनाना चाहिए ताकि मीडिया लोकतंत्र का प्रहरी बना रहे।

उन्होंने आपातकाल के दौरान समाचार पत्रों के साहसी रुख को भी याद किया, जब कुछ ने अपने संपादकीय स्थान को खाली छोड़कर सेंसरशिप का विरोध किया था। उन्होंने कहा, मीडिया को हमेशा लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में खड़ा रहना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रेस की स्वतंत्रता उसकी जिम्मेदारी से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा, मैं मीडिया से आग्रह करता हूं कि वह भारत के अभूतपूर्व विकास पथ पर ध्यान केंद्रित करे और एक सूचित और संतुलित संवाद को बढ़ावा दे जो हमारे लोकतंत्र को मजबूत करे।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने बंगाली, मराठी, पाली, प्राकृत और असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, इस पदनाम का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो हमारे देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविधता को दर्शाता है। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि एक्ट ईस्ट नीति देश की सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि भारत से आगे जाकर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ गहरे संबंधों को बढ़ावा देगी। उन्होंने बढ़ती कनेक्टिविटी की ओर इशारा किया जो जल्द ही पूर्वोत्तर से कंबोडिया तक यात्रा को सक्षम बनाएगी, जहां भारत सरकार के प्रयासों से प्रतिष्ठित अंकोरवाट मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। उन्होंने कहा, यह नीति एक गेम चेंजर साबित होगी, जो इस क्षेत्र के साथ गहरे सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देगी।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

   

सम्बंधित खबर