लैंगिक न्याय केवल एक आकांक्षा नहीं बल्कि एक संवैधानिक दायित्व : सावित्री ठाकुर

one-day seminar on Women at parliament

नई दिल्ली, 20 मार्च (हि.स.)। केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर ने आज भारतीय विधि एवं राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महिलाओं की अनिवार्य भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने शासन और नीति-निर्माण में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सशक्त संस्थागत ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि लैंगिक न्याय केवल एक आकांक्षा नहीं बल्कि एक संवैधानिक दायित्व है, जिसे प्रभावी रूप से लागू किया जाना चाहिए।

केन्द्रीय राज्यमंत्री ने संसद भवन में संवैधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान (आईसीपीएस) द्वारा आयोजित “महिला, संविधान और क़ानून: प्रतिनिधित्व, अधिकार और सुधार” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी में ये विचार प्रकट किये । इस कार्यक्रम में नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों, वीर नारियों (युद्ध विधवाओं) और जमीनी स्तर की महिला नेताओं ने भाग लिया और भारत के संवैधानिक एवं विधिक ढांचे में महिलाओं की बदलती भूमिका पर विचार-विमर्श किया।

संगोष्ठी में महिलाओं के संवैधानिक और विधिक प्रतिनिधित्व से जुड़े तीन महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किए गए।

प्रथम सत्र “संविधान सभा में महिलाओं का योगदान, मौलिक अधिकारों की वकालत और संवैधानिक प्रावधानों पर उनका प्रभाव” विषय पर केंद्रित था। इस सत्र की मुख्य वक्ता पूर्व केन्द्रीय महिला एवं विकास मंत्री स्मृति ज़ुबिन ईरानी ने सरोजिनी नायडू, हंसा मेहता और कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसी नेताओं के योगदान को रेखांकित किया, जिन्होंने भारतीय संविधान में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई।

द्वितीय सत्र “नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण अधिनियम, 2023)– अधिकार, प्रतिनिधित्व और उत्तरदायित्व” पर केंद्रित था। इस सत्र की मुख्य वक्ता पूर्व विदेश राज्यम मंत्री मीनाक्षी लेखी ने महिला आरक्षण अधिनियम के विधायी सफर और इसके राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर पड़ने वाले प्रभावों पर गहन चर्चा की।

तृतीय सत्र “जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व – चुनौतियां और संभावनाएं” पर आधारित था, जिसमें पंचायत राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा की गई। इस सत्र की वक्ताओं में सांसद कमलजीत सहारावत, भक्ति शर्मा (सरपंच, बरखेड़ी अब्दुल्ला) और नीरू यादव (सरपंच, लंबी अहीर) शामिल रहीं। वक्ताओं ने महिला नेताओं के सामने आने वाली संस्थागत बाधाओं, संसाधनों की कमी, और सामाजिक चुनौतियों को उजागर किया और महिला नेतृत्व को सशक्त बनाने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, विधिक साक्षरता अभियानों और परामर्श नेटवर्क की आवश्यकता पर बल दिया।

संगोष्ठी में 180 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें वीर नारियां (युद्ध विधवाएं), ग्राम पंचायत और शहरी निकायों के प्रतिनिधि, विभिन्न विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्य, शोधार्थी, छात्र और मंत्रालयों के अधिकारी शामिल थे। इस विविध भागीदारी ने शासन में लैंगिक न्याय को सुदृढ़ करने की सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाया।

इस संगोष्ठी ने महिला प्रतिनिधित्व, विधिक अधिकारों और शासन सुधारों पर सार्थक चर्चा के लिए एक प्रभावी मंच प्रदान किया। इसने भारत के संवैधानिक ढांचे में लैंगिक न्याय को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता को पुनः पुष्टि की, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाएं देश के विधिक और राजनीतिक भविष्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।

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हिन्दुस्थान समाचार / अनूप शर्मा

   

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