
मुंबई,1अक्टूबर ( हि.स.) । अक्सर दशहरे पर आप्टा के पत्तों को सोने के रूप में आदान प्रदान करने की संस्कारी परंपरा पुरानी है, लेकिन अब बाजार में नकली सोना बिकने की तस्वीर सामने आ रही है। आप्टा के पत्तों जैसे दिखने वाले ऊँट के पैर (कंचन) के बड़े और चिकने पत्ते सोने के रूप में बिक रहे हैं।
पर्यावरण विद डॉ प्रशांत सिनकर ने बताया कि दरअसल आप्टा के पत्ते मूलतः छोटे, खुरदुरे होते हैं और जंगल में उगने वाले पेड़ों पर उगते हैं; जबकि कंचन के पत्ते ऊँट के पैर के आकार के होते हैं और आकार में बड़े और मुलायम होते हैं। हालाँकि आयुर्वेद में दोनों ही पेड़ों का महत्व है, लेकिन त्योहार के दौरान पेड़ों की शाखाओं को बड़े पैमाने पर काटा जाता है। इससे जंगल में दुर्लभ औषधीय पेड़ों का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी शहरीकरण के कारण जंगल में आप्टा के पेड़ों की संख्या तेजी से घट रही है। इस पृष्ठभूमि में, बाजार में नकली सोने के रूप में कंचन के पत्तों की बिक्री में वृद्धि देखी जा रही है।
गौरतलब है कि कई पार्कों और खुले स्थानों में आप्टा की जगह कंचन लगाने का चलन बढ़ गया है। नतीजतन, असली परंपरा लुप्त होती जा रही है और नंगी आँखों से यह पहचानना मुश्किल हो गया है कि सोने के रूप में प्राप्त पत्ते असली हैं या नकली। आज स्थिति यह है कि असली आप्टा के पत्ते मिलना मुश्किल हो गया है और नकली सोना विक्रेताओं के पास आसानी से मिल जाता है। नागरिक अनजाने में इन्हें खरीदकर परंपरा पूरी होने का संतोष महसूस कर रहे हैं। लेकिन इसके पीछे औषधीय पौधों के अस्तित्व पर हमला हो रहा है और इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
पर्यावरणविद् डॉ. प्रशांत सिंनकर कहते हैं कि सरकार को जंगल में आप्टा के पेड़ों को बचाने के लिए एक विशेष अभियान चलाने की ज़रूरत है। वरना, कुछ सालों में सोने जैसे आप्टा के पत्ते सिर्फ़ किताबों या संग्रहालयों में ही दिखाई देंगे और हमारे हाथ में सिर्फ़ नकली सोना ही बचेगा!
ठाणे जिले के पर्यावरणविद प्रशांत बतलाते हैं कि दशहरे पर सोना बाँटने की परंपरा है, लेकिन असली ज़िम्मेदारी सोना बाँटने की नहीं, बल्कि पेड़ों को बचाने की है। क्योंकि पेड़ बचेंगे, तभी परंपरा बचेगी; और अगर परंपरा बची रहेगी, तभी असली सोना हमारे हाथों में चमकेगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / रवीन्द्र शर्मा



