शोध में संस्कृति मूलक पद्धतियां अधिक प्रासंगिक, नई शोक तकनीक से बढ़ेगा ज्ञान

- 'शोध तकनीक में उभरती हुई प्रवृत्तियां' विषयक कार्यशाला

देहरादून, 20 मई (हि.स.)। डीएवी पीजी कॉलेज के अंग्रेजी विभाग की ओर से सोमवार को 'शोध तकनीक में उभरती हुई प्रवृत्तियां' विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया।

मुख्य वक्ता गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो. हेमलता कृष्णमूर्ति ने शोध तकनीक पर प्रकाश डाला। उन्होंने शोध के विभिन्न प्रकारों, स्वरूपों और पद्धतियों का वर्णन किया। शोध प्रबंध के विभिन्न रूपों को उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट किया। अंग्रेजी साहित्य में विश्लेषणात्मक तथा वर्णनात्मक पद्धतियों का सांगोपांग चित्रण प्रस्तुत किया। साथ ही स्पष्ट किया कि साहित्य संस्कृति को प्रवाहित करने में सहायक होता है, इसलिए शोध में संस्कृति मूलक पद्धतियां अधिक प्रासंगिक हो गई है।

अंग्रेजी दून विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो. चेतन पोखरियाल ने शोध के प्रयोग पक्ष को व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि आज के समय में स्त्रीवाद, दलित चेतना, अनुवाद कला तथा भारतीय साहित्य का अध्ययन करने के लिए नई शोध तकनीक का प्रयोग शोधार्थी कर रहे हैं। इससे न केवल वर्तमान ज्ञान में अभिवृद्धि हो रही है बल्कि साहित्य का अध्ययन एवं उसकी समालोचना के लिए नए आलोचनात्मक तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।

उन्होंने नवीन शोध विषयों से भी छात्रों को परिचित कराया, जिनका चयन वे अपने शोध प्रबंध के लिए कर सकते हैं। कार्यक्रम में श्री गुरु राम राय महाविद्यालय की अंग्रेजी प्राध्यापिका डॉ. ज्योति पांडेय एवं डॉ. अनुपम सैनी, डीबीएस महाविद्यालय के अंग्रेजी प्राध्यापक डॉ. विद्युत बोस तथा भारतीय सैन्य संस्थान के अंग्रेजी प्राध्यापक डॉ. कप्तान सिंह आदि थे।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/रामानुज

   

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