क्रांतिकारी रास बिहारी बोस के योगदान को किया याद

-उत्तर भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की रखी थी नींव

देहरादून, 25 मई (हि.स.)। लैंसडाउन चौक स्थित दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में शनिवार को स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस के स्वतंत्रता आंदोलन में दिए योगदान को याद किया गया। वक्ताओं ने उनके क्रांतिकारी योगदान व देहरादून से जुड़े अनेक प्रसंगों पर प्रमाणिक दस्तावेजों व स्लाइड के माध्यम से प्रकाश डाला। कार्यक्रम के प्रारंभ में दूरदर्शन के डीडी भारती की ओर से रास बिहारी बोस पर 22 मिनट की फिल्म ‘अनबीटन हीरो रास बिहारी बोस’ दिखाई गई।

पत्रकार राजू गुसाईं ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक अध्यक्ष रास बिहारी बोस देहरादून में रहे और यहां वन अनुसंधान संस्थान में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने उत्तर भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी थी। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को चुपचाप संचालित किया। इसके लिए वे लाहौर और पंजाब जैसे दूरदराज के स्थानों पर चले जाते थे। उन्होंने बोस के दून में बिताए समय, वन अनुसंधान संस्थान में उनके दस्तावेज और अन्य जुड़ी घटनाओं पर बुनियादी जानकारी दी। जापान में रास बिहारी बोस के परिवार के सदस्यों से जुड़ने के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।

सामाजिक कार्यकर्ता और शोधकर्ता मुकेश सेमवाल ने उनके दिल्ली षड्यंत्र मामले का विस्तृत विवरण दिया जिसने रास बिहारी बोस को भारत में नायक बना दिया। उन्होंने अपनी बात दिल्ली-लाहौर साजिश मामले पर केन्द्रित की। उन्हाेंने कहा कि 23 दिसंबर 1912 को जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी बंगाल से दिल्ली स्थानांतरित कर दी थी, तब रासबिहारी बोस और बसंत बिश्वास ने वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका था। यह ब्रितानी पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था कि क्रांतिकारियों का पता लगाए। अंततः कुछ अंदरूनी लोगों की मदद से अंग्रेजों ने पकड़ लिया और क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया। चार लोगों को फांसी पर लटका दिया गया। इस मामले में गदर आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने निष्कर्ष निकाला कि इस विद्रोह के प्रमुख नेता रासबिहारी बोस थे।

राष्ट्रीय आंदोलन में रास बिहारी के योगदान को नहीं मिल सका उपयुक्त स्थान-

डाॅ. योगेश धस्माना ने कहा कि रासबिहारी बोस राष्ट्रीय आंदोलन के ऐसे क्रांतिकारी राष्ट्रवादी नेता थे, जिन्होंने देहरादून को अपनी कर्मभूमि बनाते हुए पहले इंडियन इंडिपेंस लीग की स्थापना की, फिर जापान में आजाद हिंद फौज का गठन कर देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन में रास बिहारी के योगदान को पर्याप्त स्थान नहीं मिल सका।

उनकी स्मृतियों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के हो प्रयास-

एफआरआई घोसी गली और दर्शन लाल चौक सहित टैगोर विला में बम बनाने की प्रयोगशाला से जुड़ी उनकी स्मृतियों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के प्रयास होने चाहिए। रास बिहारी बोस ने देश की आजादी के लिए आर्य समाज, अरविंदो और खुदीराम बोस के सिद्धांतों को लेकर अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियों और विघटनकारी ताकतों के विरुद्ध देश में युवाओं को संगठित किया। इस काम में उन्हें दून घाटी में रह रहे राजा महेंद्र प्रताप का भी सक्रिय सहयोग मिला था। कार्यक्रम के प्रारंभ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने वक्ताओं व लोगों का अभिनंदन किया।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/रामानुज

   

सम्बंधित खबर