कैंची धाम में वार्षिक महोत्सव पर उमड़ रहे श्रद्धालु, कई किलोमीटर तक लगी लंबी कतारें

नैनीताल, 15 जून (हि.स.)। नैनीताल में जनपद मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर देश में विरले ही मिलने वाली उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी के किनारे स्थित बाबा नीब करौरी के विश्व प्रसिद्ध कैंची धाम में शनिवार को हर वर्ष की तरह भव्यता व धार्मिक हर्षोल्लास के साथ वार्षिक महोत्सव मनाया जा रहा है। इस बार बड़ी संख्या में सुबह से ही श्रद्धालु उमड़ रहे हैं।

प्रशासन ने श्रद्धालुओं को चार पहिया के साथ दोपहिया वाहनों से भी आने पर पहली बार रोक लगायी है और सभी श्रद्धालुओं को केवल शटल वाहनों से कैंची धाम पहुंचाया जा रहा है। इसके बावजूद कैंची धाम में दोनों ओर श्रद्धालुओं की 4-4 किलोमीटर लंबी कतारें लगी हुई हैं। श्रद्धालु तपती धूप में नंगे पैर भी एक-एक कदम आगे बढ़ते हुए बाबा नीब करौरी की सजीव सी लगने वाली मूर्ति के दर्शन कर रहे हैं और प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। जनपद के एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा, एसडीएम प्रमोद कुमार सहित अनेक पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी मौके पर व्यवस्थाओं को बनाने में जुटे हुए हैं।

ऐसे हुई कैंची धाम में बाबा नीब करौरी के मंदिर की स्थापना

इस अवसर पर जान लें कि बाबा नीब करौरी कैसे कैंची धाम पहुंचे। बताया जाता है कि 1942 में एक दिन तब कुछ ही घरों के कैंची गांव में रहने वाले पूर्णानंद तिवाड़ी को एक रात्रि खुफिया डांठ नाम के निर्जन स्थान पर एक कंबल ओढ़े व्यक्ति ने कथित भूत के डर से भय मुक्त कराया और 20 वर्ष बाद लौटने की बात कही। वादे के अनुसार 1962 में वही कंबल ओढ़े व्यक्ति बाबा नीब करौरी रानीखेत से नैनीताल लौटते समय कैंची में रुके और सड़क किनारे के पैराफिट पर बैठ गए और पूर्णानंद को बुलाया।

कहा जाता है कि इससे पूर्व सोमवारी बाबा इस स्थान पर भी धूनी रमाते थे, जबकि उनका मूल स्थान पास ही स्थित काकड़ीघाट में कोसी नदी किनारे था। सोमवारी बाबा के बारे में प्रसिद्ध था कि एक बार भण्डारे में प्रसाद बनाने के लिए घी खत्म हो गया। इस पर बाबा ने भक्तों से निकटवर्ती नदी से एक कनस्तर जल मंगवा लिया, जो कढ़ाई में डालते ही घी हो गया। तब तक निकटवर्ती भवाले से घी का कनस्तर आ गया। बाबा ने उसे वापस नदी में उड़ेल दिया, वह घी पानी बन नदी में समाहित हो गया।

इधर जब नीब करौरी बाबा कैंची से गुजरे तो उन्हें कुछ दैवीय सिंहरन सी हुई। इस पर उन्होंने यहां आश्रम बनाने का निर्णय लिया। आश्रम की स्थापना के लिये तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एवं बाद में देश के प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह ने वन भूमि उपलब्ध करायी। इसके बाद 1962 में ही बाबा ने यहां आश्रम की स्थापना की। 1964 से मंदिर का स्थापना दिवस समारोह अनवरत 15 जून को मनाया जाने लगा। बाद में 15 जून 1973 को यहां विंध्यवासिनी और ठीक एक साल बाद मां वैष्णों देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई।

बाबा जी कैंची धाम में कई वर्षों तक रहे। वह यहां हर रोज एक कॉपी में ‘राम नाम’ लिखा करते थे। कहते हैं कि बाबा जी 9 सितम्बर 1973 को 10 सितंबर के भी राम नाम लिखकर और 11 सितंबर की तारीख डालकर कैंची से आगरा के लिए लौटे थे, जिसके दो दिन बाद ही अनन्त चतुर्दशी के दिन 11 सितंबर को वृन्दावन में उन्होंने महाप्रयाण किया। इसके उपरांत बाबा जी की मूर्ति व मंदिर का निर्माण कार्य 1974 में शुरू हुआ और 15 जून 1976 को महाराज जी की मूर्ति की स्थापना और अभिषेक हुआ, जिसके दर्शनों के लिये श्रद्धालु अब सैलाब की तरह उमड़ रहे हैं।

सबसे पहले नैनीताल के कैंची धाम में की थी मंदिर की स्थापना

उल्लेखनीय है कि बाबा नीब करौरी कैंची से पहले नैनीताल के हनुमानगढ़ी में मंदिर की स्थापना कर चुके थे। नैनीताल के निकट अंजनी मंदिर में बहुत पहले कोई सिद्ध पुरुष आये थे और उन्होंने कहा था कि एक दिन यहां अंजनी का पुत्र आएगा। 1944-45 में बाबा के चरण-पद यहां पड़े तो लागों ने सिद्ध पुरुष के वचनों को सत्य माना। इस स्थान को तभी से हनुमानगढ़ी कहा गया। बाद में बाबा ने ही यहां अपना पहला आश्रम बनाया, इसके बाद निकटवर्ती भूमियाधार सहित वृन्दावन, लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, बद्रीनाथ, हनुमानचट्टी आदि स्थानों में कुल 22 आश्रम स्थापित किये।

यह भी कहा जाता है कि बाबा अपनी दैवीय ऊर्जा से अचानक ही कहीं भी भक्तों के बीच प्रकट हो जाते थे और फिर अचानक ही लुप्त भी हो जाते थे। यहां तक कि वे जिस वाहन में बैठे हों उसका पीछा करने या फिर पैदल चलते समय उनका पीछा करने पर भी वे अचानक ही विलुप्त हो जाते थे। ऐसे न जाने कितने किस्से बाबा और उनके पावन धाम से जुड़े हुए हैं, जिन्हें सुनकर लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. नवीन जोशी/सत्यवान/वीरेन्द्र

   

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