मनुष्य को शिक्षा की आवश्यकता आजीवन होती है : डॉ राम मनोहर

प्रयागराज, 19 जून (हि.स.)। हमारे पास जो कुछ भी ज्ञान है वह इन्द्रियजनित अनुभव है। इसके अलावा इन्द्रियातीत अनुभव होता है। उसकी यात्रा हमारे ऋषि मुनियों ने की है। विद्या वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है। मनुष्य को शिक्षा की आवश्यकता आजीवन होती है। ज्ञान प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं होती है यह आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।

उक्त विचार विद्या भारती के क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री डॉ राम मनोहर ने बुधवार को सिविल लाइन्स स्थित ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज में नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग में व्यक्त किया। उन्होंने नई शिक्षा नीति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पूर्व शिक्षा नीति में भारतीय संस्कृति एवं उसकी गौरवमयी गाथा का वर्णन वृहद रुप में नहीं किया गया था। जबकि नई शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान, संस्कार एवं भारत की गौरवमयी गाथा का वृहद वर्णन किया गया है। उन्होंने नई शिक्षा नीति के सूत्र का विस्तार से वर्णन करते हुये कहा कि बालक की शिक्षा गर्भ से ही प्रारम्भ हो जाती है। जिसके सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि 0 से 3 वर्ष की शिक्षा माता-पिता एवं घर के वातावरण पर आधारित होती है।

विद्यालय के प्रधानाचार्य विक्रम बहादुर सिंह परिहार ने मुख्य वक्ता को स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्रम तथा श्रीफल देकर सम्मानित किया। डॉ राम मनोहर का पाथेय नवचयनित आचार्यों को प्राप्त हुआ। दस दिनों तक चलने वाले इस नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग में प्रतिदिन विभिन्न सत्रां जैसे वैचारिक सत्र, शैक्षिक सत्र, क्रियात्मक सत्र, चर्चात्मक सत्रों में आचार्यों को विभिन्न विद्वतजनों द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/मोहित

   

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