आपातकाल की गाथा पाठ्यक्रम में शामिल होनी चाहिए : ब्रज किशोर मिश्र

लखनऊ, 25 जून (हि.स.)। 1975 को भारत में आपातकाल लागू हुआ था। भले ही इस काले दिन को बीते 49 साल हो गए हों लेकिन इसके दिए जख्म आज भी हरे हैं। 21 मार्च 1977 तक 21 महीने के लिए लगे आपातकाल का वह स्याह कालखंड लोकतंत्र सेनानियों के लिए एक दुस्वप्न है। आज भी उस दौर को याद कर लोकतंत्र सेनानियों की आंखें नम हो जाती हैं।

लोकतंत्र सेनानी ब्रज किशोर मिश्र आपातकाल के काले दौर को याद करते हुए कहते हैं कि, अपनी सत्ता को बचाने की नीयत से 25 जून की रात को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। इसके साथ ही हज़ारों लोगों को बिना कारण बताए जेल में ठूंसा जाने लगा।

मेरी उम्र उस समय 22 वर्ष की थी और मैं लखनऊ विश्वविद्यालय में कानून का विद्यार्थी था। आपातकाल लगने की सूचना मिलने के बाद मैंने विवि के साथियों से संपर्क कर उन्हें छोटी-छोटी टोलियों में बांटकर भूमिगत रहकर आंदोलन जारी रखने को कहा। पुलिस ने धरपकड़ शुरू कर दी थी। 10 जुलाई 1975 को रात नौ बजे मेरे गांव महोई को चारों तरफ से पुलिस ने घेर लिया। उसके बाद पुलिस ने जैसे ही मुझे गिरफ़्तार कर थाने ले जाने की कवायद शुरू की तो सैकड़ों ग्रामीणों ने पुलिस वालों को घेर लिया। मुझे गिरफ़्तार करते ही मैंने संपूर्ण क्रांति का गीत गाना शुरू किया कि “संपूर्ण क्रांति का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है, तिलक लगाने तुम्हें जवानों क्रांति द्वार पर आई है।” मेरे साथ साथ सभी ग्रामीण भी इस गीत को गाते हुए गांव के बाहर तक मुझे छोड़ने आए।

ब्रज किशोर मिश्र आगे बताते हैं कि, गिरफ्तारी के बाद मुझे फ़तेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गया। जेल में कई दिन मुझे तन्हाई बैरक में रखा गया। करीब डेढ़ महीने बाद एलएलबी की परीक्षा देने के लिए मुझे लखनऊ जेल भेजा गया। लखनऊ जेल में मुझे फांसीगारद की तन्हाई बैरक में रखा गया है। कुल 14 माह की जेल यात्रा के दौरान शारीरिक और मानसिक तौर पर खूब प्रताड़ित किया गया। लेकिन जेल में बंद अन्य लोकतंत्र रक्षक एक दूसरे का हौसला बनाए रखते। जेल में पुलिस लाठीचार्ज करती थी और सरकार से माफ़ी मांगने का दबाव बनाती थी। मार्च 1977 में जब लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तब मुझे पैरोल पर छोड़ा गया।

ब्रज किशोर मिश्र का कहना है कि देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए अनेकों अनेक लोग बलिदान हुए। उन बलिदानियों के संघर्ष को वर्तमान और भावी पीढ़ी जान सकें इसलिए आपातकाल की संपूर्ण गाथा बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल की जानी चाहिए।

हिन्दुस्थान समाचार/बृजनन्दन/मोहित

   

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