ढाका में जहांगीरनगर विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों ने भटक रहे बीमार कस्तूरी बिलाव को बचाया

ढाका, 02 जुलाई (हि.स.)। जहांगीरनगर विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों ने सोमवार देर रात मीर मोशर्रफ हुसैन हॉल क्षेत्र में भटक रहे एक बीमार कस्तूरी बिलाव (सिवेट) को बचा लिया। इसके बाद उसे विश्वविद्यालय के वन्यजीव बचाव केंद्र में रखा गया। कुछ छात्रों ने घूम रहे इस बिलाव का वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया था।

प्राणीशास्त्र के छात्र रबीउल इस्लाम रोबी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “रविवार रात से यह सिवेट परिसर के चारों ओर असामान्य रूप से घूम रहा है। लार टपका रहा है। बहुत थका हुआ लग रहा है। आमतौर पर एक सिवेट इस तरह से व्यवहार नहीं करता। यह ऐसा व्यवहार तभी करता है, जब बीमार हो या परिसर में इसका आवास नष्ट कर दिया गया हो।”

दरअसल, हाल ही में विश्वविद्यालय प्रशासन ने परिसर में नई इमारतों के निर्माण के लिए पेड़ों की कटाई की है, जिससे इससे परिसर की जैव विविधता और जानवरों के आवास को नुकसान पहुंचा है। इसलिए इस कस्तूरी बिलाव (सिवेट) के भटकने की संभावना जताई गई। इसके बाद प्राणी शास्त्र विभाग के प्रो. डॉ. कमरुल हसन और 46वें बैच के छात्र रिपन रेहान व अन्य छात्रों ने इस बचाया। प्रो. हसन का कहना है कि कस्तूरी बिलाव शर्मीला होता है। यह मुख्य रूप से भोजन के लिए रात में बाहर आते हैं, लेकिन इंसानों के पास कम ही देखे जाते हैं।

कस्तूरी बिलाव को गंधमार्जार और गंध बिलाव भी कहा जाता है। यह एशिया और अफ्रीका के ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों (विशेषकर वनों) में रहते हैं। यह आसानी से वृक्षों में चढ़ जाते हैं और आमतौर पर रात्रि में ही बाहर निकलते हैं। इनकी वैसी तो कई प्रजातियां हैं, जिनमें से एक भारतीय कस्तूरी बिलाव है। यह ऑस्ट्रेलिया से लेकर भारत और चीन तक पाए जाते हैं। इसका कद लगभग तीन फीट लंबा और 10 इंच ऊंचा होता है। रंग स्लेटी होता है और उस पर काली चित्तियां रहती हैं। दूसरा अफ्रीकी कस्तूरी बिलाव है। कस्तूरी बिलाव का शरीर बिल्ली जैसा होता है, लेकिन इसका मुख कुछ-कुछ कुत्ते की भांति आगे से खिंचा हुआ होता है। इनमें एक ग्रंथि होती है, जिससे वह अपनी कस्तूरी जैसी महक पैदा करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद/सुनीत

   

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