एक आदर्श स्वयंसेवक, आदर्श प्रचारक और कुशल संगठनकर्ता थे रज्जू भैया : डॉ राम मनोहर

परीक्षा पे चर्चा

- रज्जू भैया ने सबसे अधिक शैक्षणिक गतिविधियों को गति दी : घनश्याम पाण्डेय

-रज्जू भैया नैतिक शक्ति एवं प्रभाव का स्रोत रहे : शेषधर द्विवेदी

-ज्वाला देवी में मनाई गई रज्जू भैया की जयन्ती

प्रयागराज, 29 जनवरी (हि.स.)। रज्जू भैया शिक्षा प्रसार समिति की ओर से ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज सिविल लाइन्स में रज्जू भैया जयंती पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस मौके पर मुख्य अतिथि घनश्याम पाण्डेय ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह उपाख्य 'रज्जू भैया' का कार्यकाल अन्य सरसंघचालकों की अपेक्षा अवधि में सबसे छोटा रहा। परन्तु उन्होंने सबसे अधिक सामाजिक, राष्ट्रीय एवं शैक्षणिक गतिविधियों को गति प्रदान की। वह संघ के स्वयंसेवकों को पिता के समान प्यार करते थे और उनका हर प्रकार से मार्गदर्शन करते थे।

विद्याभारती के काशी प्रान्त के संगठन मंत्री डॉ राम मनोहर ने कहा कि भौतिकी के अद्वितीय विद्वान प्रो.राजेन्द्र सिंह ने अपना सारा जीवन हिन्दू राष्ट्र को संगठित करने के प्रयास में लगा दिया। रज्जू भैया एक आदर्श स्वयंसेवक, आदर्श प्रचारक और कुशल संगठनकर्ता थे। उनका जीवन पूरी तरह सादगी से भरा हुआ था। संघ के सेवा कार्यों को गति देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भारतीय समाज में ऐसी विभूतियों का अत्यंत अभाव है, जो स्वेच्छा से पद त्याग करें।

उन्होंने कहा कि समाज के अनेक वर्गों द्वारा समय-समय पर संघ पर यह आरोप लगाया जाता था कि संघ का प्रमुख कोई मराठा ब्राह्मण ही बन सकता है। जब रज्जू भैया इस पद पर प्रतिष्ठित हुए तो सभी के मुंह बंद हो गए। उन्होंने अपने हिस्से की पैतृक सम्पति संघ कार्य के लिए अर्पित करने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। निधन से पूर्व अपने नेत्रों का दान करके वह किसी का जीवन रोशन कर गए। वास्तव में रज्जू भैया देने में विश्वास करते थे। इसमें उन्हें आत्मिक सुख प्राप्त होता था।

प्रदेश निरीक्षक शेषधर द्विवेदी ने कहा कि अगर हम देखें तो रज्जू भैया सचमुच संघ परिवार के न केवल बोधि-वृक्ष अपितु सबको जोड़ने वाली कड़ी थे। नैतिक शक्ति और प्रभाव का स्रोत थे। उनके चले जाने से केवल संघ ही नहीं अपितु भारत के सार्वजनिक जीवन में एक युग का अन्त हो गया है। रज्जू भैया स्वयं में ध्येयनिष्ठा, संकल्प व मूर्तिमन्त आदर्शवाद की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। इसलिए रज्जू भैया सभी के अन्तःकरण में सदैव जीवित रहेंगे।

विद्यालय के प्रधानाचार्य विक्रम बहादुर सिंह परिहार ने कहा कि रज्जू भैया 1946 में प्रयाग विभाग के कार्यवाह, 1947 में जेल-यात्रा, 1949 में दो तीन विभागों को मिलाकर संभाग कार्यवाह, 1952 में प्रान्त कार्यवाह और 1954 में भाऊराव देवरस के प्रान्त छोड़ने के बाद उनकी जगह पूरे प्रान्त का दायित्व संभालने लगे। 1961 में भाऊराव के वापस लौटने पर प्रान्त प्रचारक का दायित्व उन्हें वापस देकर सह प्रान्त-प्रचारक के रूप में पुनः उनके सहयोगी बने। भाऊराव के कार्यक्षेत्र का विस्तार हुआ तो पुनः 1962 से 1964 तक उत्तर प्रदेश के प्रान्त प्रचारक, 1966 से 1974 तक सह क्षेत्र प्रचारक व क्षेत्र प्रचारक का दायित्व संभाला। 1975 से 1977 तक आपातकाल में भूमिगत रहकर लोकतन्त्र की वापसी का आन्दोलन खड़ा किया। 1977 में सह सरकार्यवाह बने तो 1978 में माधवराव मुले का सर कार्यवाह का दायित्व भी उन्हें ही दिया गया। 1975 से 1987 तक इस दायित्व का निर्वाह करके 1987 में शेषाद्रि को यह दायित्व देकर सह सरकार्यवाह के रूप में उनके सहयोगी बने।

1994 में तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने अपने गिरते स्वास्थ्य के कारण जब अपना उत्तराधिकारी खोजना शुरू किया तो सबकी निगाहें रज्जू भैया पर ठहर गयीं और 11 मार्च 1994 को बाला साहेब ने सरसंघचालक का शीर्षस्थ दायित्व स्वयमेव उन्हें सौंप दिया। इस अवसर पर बोर्ड परीक्षार्थीयों को प्रधानमंत्री मोदी का परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम प्रोजेक्ट के माध्यम से लाइव दिखाया गया। इस दौरान विद्यालय के आचार्य एवं ऑनलाइन माध्यम से सभी छात्र कार्यक्रम में उपस्थित रहें।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/राजेश

   

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