जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल: अरुंधति सुब्रमण्यम कन्हैयालाल सेठिया पुरस्कार से सम्मानित

जयपुर, 3 फ़रवरी (हि.स.)। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शनिवार को अरुंधति सुब्रमण्यम को प्रतिष्ठित कन्हैयालाल सेठिया पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध कवि, शिक्षक, समाज सुधारक, पर्यावरणविद् और स्वतंत्रता सेनानी महाकवि कन्हैयालाल सेठिया को महाकवि कन्हैयालाल सेठिया फाउंडेशन के सहयोग से फेस्टिवल द्वारा प्रस्तुत वार्षिक पुरस्कार के माध्यम से याद किया जाता है।

फेस्टिवल का तीसरा दिन राजनीति, जीवनीकार, संगीत, स्टाइल, अध्यात्म और रचनात्मकता के नाम रहा। तीसरे दिन का पहले सत्र ‘ओपेन्हाईमर: द अमेरिकन प्रोमिथेउस’ में केय बर्ड ने अपनी किताब के माध्यम से एटमिक त्रासदी और ओपेन्हाईमर के व्यक्तित्व पर चर्चा की। केय बर्ड की किताब के आधार पर ही क्रिस्टोफर नोलन ने सुपरहिट फिल्म ‘ओपेन्हाईमर’ बनाई है।

सत्र ‘द पेल ब्लू डॉट: चेरिशिंग अवर प्लैनेट’ में मिंत्रा और क्योरफिट के संस्थापक मुकेश बंसल, जी20 शेरपा अमिताभ कांत और एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री नीलकंठ मिश्रा से एनडीटीवी समूह के कार्यकारी संपादक विष्णु सोम ने संवाद किया। अंतरिक्ष अन्वेषण के बढ़ते उद्योग और इसमें भारत के स्थान के बारे में बोलते हुए, अमिताभ कांत ने कहा कि हमें अंतरिक्ष पर्यटन के लिए अंतरिक्ष व्यवसाय में नहीं होना चाहिए, बल्कि अपने नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए होना चाहिए। पैनल ने उस भूमिका पर प्रकाश डाला जो निजी क्षेत्र और, सबसे महत्वपूर्ण बात, भारत के युवाओं को अंतरिक्ष अन्वेषण के अनुसंधान में निभानी चाहिए। मुकेश बंसल, जिन्होंने भारत की पहली निजी अंतरिक्ष कंपनी, स्काईरूट को भी फंडेड किया है, ने कहा कि बहुत से युवा उद्यमी सचमुच समझ रहे हैं कि आकाश की सीमा है।

‘द पावर ऑफ मिथ’ में, आनंद नीलकंठन ने सत्यार्थ नायक (द वीक द्वारा प्रस्तुत) के साथ हिंदू ग्रंथों पर चर्चा की। ब्लॉकबस्टर बाहुबली त्रयी के लेखक आनंद नीलकंठन ने 'ईश्वर' के बारे में अपने विचार को समझाया और बताया कि कैसे यह औपनिवेशिक युग के दौरान अंग्रेजों द्वारा विकसित 'एक ईश्वर, एक हिंदू' की अवधारणा से काफी अलग है। नीलकंठन ने कहा, “हमारी सभी परंपराएं, यदि आप देखें, सभी बहसें हैं, गीता एक बहस है। गीता कृष्ण द्वारा थोपी गई बात नहीं है कि मैं जो चाहता हूं, तुम उसका पालन करो अन्यथा तुम अनन्त नरक में जलोगे। वह ऐसा कभी नहीं कहते।

सत्र ‘बैन्ड, बर्न्ड एंड सेंसर्ड’ में उन किताबों पर चर्चा हुई, जिन्हें प्रशासन और समाज ने खतरनाक मानकर प्रतिबंधित किया, जला दिया और सेंसर किया। सत्र की शुरुआत में वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग ने अपने उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ पर बात की। ‘चित्तकोबरा’ का प्रकाशन 1979 में हुआ था, और इस उपन्यास की वजह से लेखिका पर अश्लीलता का आरोप लगाकर, उन पर पुलिस केस किया गया। सत्र ‘पारो@40’ में लेखिका नमिता गोखले के उपन्यास ‘पारो’ और उनके लेखन पर दिलचस्प चर्चा हुई। इतिहासकार और पॉडकास्टर एरिक चोपड़ा ने कहा, “यह इस समय की किताब है और हाल ही में ‘एनिमल’ फिल्म देखकर मुझे एहसास हुआ कि एक पुरुष को आज़ादी महिला की कीमत पर मिलती है, लेकिन एक महिला, एक पारो कभी किसी दूसरे की कीमत पर अपनी आज़ादी हासिल नहीं करती।

‘द प्रॉमिस’ नामक एक सत्र मेंबुकर पुरस्कार विजेता डेमन गैलगुट ने अपनी किताब, ‘द प्रॉमिस’ के बारे में बात की, जो रिश्तों में पॉवर के खेल को व्यक्त करती है।

‘जस्टिस: द वोइस ऑफ़ द वोइसलेस’ सत्र की शुरुआत लेखिका और कानून की एसोसिएट प्रोफेसर अपर्णा चंद्रा ने पिछले 75 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और संरचना में हुए भारी बदलावों के बारे में बोलते हुए की। जस्टिस मुरलीधर ने टिप्पणी की, आज हमारे पास ऐसी न्यायपालिका नहीं है, जो कार्यपालिका के हस्तक्षेप से पूरी तरह अछूती हो। चंद्रा ने अपनी सह-लिखित पुस्तक ‘कोर्ट ऑन ट्रायल’ में विषयों पर चर्चा करके बातचीत को आगे बढ़ाया। जस्टिस मदन बी. लोकुर ने कहा, भारत का संविधान स्वयं सर्वोच्च न्यायालय में आने के लिए पर्याप्त दिशानिर्देश प्रदान करता है; इसलिए सुप्रीम कोर्ट को बस इतना करना है कि संविधान जो कहता है उसका पालन करें। सत्र का समापन पैनलिस्टों द्वारा कॉलेजियम में महिला न्यायाधीशों की कमी और क्या सुप्रीम कोर्ट पितृसत्तात्मक सिंड्रोम से पीड़ित होने पर चर्चा के साथ उचित रूप से हुआ।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप

   

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