श्याम बैनेगल ने दो-दो रुपये जनता से लेकर मंथन बनायी तो राजस्थानी फिल्म क्यों नहीं : मनोज

जयपुर, 10 फ़रवरी (हि.स.)। विश्वप्रसिद्द जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल (जिफ) का आयोजन जयपुर में चल रहा है। इस बार राजस्थान से बीस फिल्मों की स्क्रीनिंग हो रही है।

डायरेक्टर और एक्टर एंड्रयू वियल ने बताया की तीसरी विजिट है। अपनी ऐक्टिंग को लेकर काफ़ी पैशनेट हैं। उन्हें यही पैशन जयपुर और राजस्थान के युवाओं में दिखता है। पहली बार वे 2012 में जयपुर आये थे और जब से ही उन्हें जयपुर से एक कनेक्शन फील होता है। जयपुर ही क्यों चुनने पर वे क़हते हैं कि जयपुर बेहद डायनामिक और वाइब्रेंट सिटी है। संस्कृति, कला की दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है। वे क़हते है युवाओं को प्रोत्साहन और कॉन्फ़िंडेंस की ज़रूरत है। अगर उन्हें कोई ऐसा मिल जाये जो उन्हें उनकी क़ाबिलियत का यक़ीन दिला सके तो वे कुछ भी कर सकते हैं। वे क़हते हैं ऐक्टिंग और एंटरटेनमेंट पूरी दुनिया को जोड़ती है। उनकी पहली फ़िल्म को लेकर उन्हें होने वाली जो टेक्नोलॉजी परेशानी हुई उस पर वे क़हते हैं कि कैसे आज का टाइम टैकोलॉजिकल एडवांस्ड हो गया है।

अपने जिफ के अनुभव साझा करते हुए वे बताते हैं कि कैसे जिफ इंटरनेशनल फ़िल्मों को जगह देता है और विभिन्न भाषाओं के सिनेमा को बढ़ावा देता है, यही ख़ूबसूरती है। वे दुनिया में अलग अलग देश घुम चुके हैं लेकिन उन्हें राजस्थान की ख़ूबसूरती अलग तरीक़े से आकर्षित करती है।

जयपुर इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल का दूसरे दिन की शुरुआत फाउंडर हनु रोज , लव यु म्हारी जान राजस्थानी कमर्शियल फिल्म के डायरेक्टर मनोज़ कुमार पांडेय और राकेश गोगना के डायलॉग के साथ शुरू होती है।

फ़िल्म डायरेक्टर मनोज कुमार ने कहा कि राजस्थान में मुंबई से भी अधिक फ़िल्म ऐक्टिविटिस हो रही हैं। वे क़हते है कि राजस्थान की जनसंख्या 8.5 करोड़ है, अगर एक एक रुपए लेकर भी फ़िल्म बनायी जाये तो भी एक अच्छी फ़िल्म बनायी जा सकती है। वे श्याम बैनेगल का उदाहरण देते हैं जिन्होंने दो-दो रुपये जनता से लेकर “मंथन” फ़िल्म बनायी थी।

फ़िल्म डायरेक्टर राकेश गोगना बताते हैं कि कैसे राजस्थान में राजस्थानी बोलने वालों को कम पढ़ा लिखा आंका जाता है। एक बड़े बदलाव और भाषायी अपनाव की ज़रूरत है। वे दादा साहेब फाल्के के आंदोलन और भाषायी सिनेमा के क्रेज़ की बात बताते हैं की कैसे असमी, बंगाली, उड़िया सिनेमा बढ़ रहे हैं और हरियाणवी सिनेमा को तो ओटीटी पर भी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप

   

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