महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती पर व्याख्यान माला आयोजित

संभावनाओं को संभव बनाने का कार्य गुरु पर निर्भर होता है -शुक्ल

अजमेर, 12 फरवरी(हि.स.)। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अनिल कुमार शुक्ल ने कहा कि संभावना को संभव बनाने का कार्य गुरु पर होता है और महर्षि दयानंद सरस्वती ने इस गुरुतर भार को बखूबी निभाया था। महर्षि दयानंद के विचार आज भी हर क्षेत्र में प्रासंगिक हैं।

सोमवार को महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती पर विश्वविद्यालय के स्वराज सभागार में विकसित भारत के पुरोधा महर्षि दयानंद सरस्वती विषयक आयोजित व्याख्यान माला का आयोजन किया गया था। यह व्याख्यान माला महर्षि दयानंद शोधपीठ एवं महर्षि दयानंद चेयर के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। कुलपति शुक्ल ने कहा कि स्वदेश का अपना प्रभाव होता है, जो भाव अपनी भाषा में व्यक्त किया जा सकता है। वह अन्य भाषा में नहीं मिल सकता है उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद में ज्ञान की अपार जिज्ञासा थी, इसी का परिणाम था कि उन्होंने अपने जन्म नाम मूल शंकर तिवारी में से पहले तिवारी को त्यागा फिर शंकर को त्याग कर मूल में रहकर इस जिज्ञासा का शांत को किया हैं। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद ने समाज में व्याप्त प्रत्येक बुराई पर अपनी पैनी दृष्टि रखते हुए उसको खत्म करने का बीड़ा उठाया था।

मुख्य वक्ता के रूप में सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में संस्कृत विभाग में सहायक आचार्य डॉ आशुतोष पारीक ने कहा कि ऋषि दयानंद का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त कराने और जाति बंधन तोड़ने के लिए हुआ था ।उनका आदर्श वाक्य था। आर्यावर्त । उठ जाग ।आगे बढ़ । समय आ गया है। उन्होंने समाज में फैली बुराइयों पर निर्भीक प्रहार किया था। सुभाष चंद्र बोस ने उनको आधुनिक भारत के भाग्य निर्माता के रूप में विभूषित किया था।

ऋषि उद्यान में आचार्य अंकित प्रभाकर ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती ने आज से लगभग 150 वर्ष पहले विकसित भारत की योजना तैयार की थी, उन्होंने अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में बेटियों की शिक्षा के लिए आवाज बुलंद की थी, उनके अध्ययन के लिए आर्य समाज संस्था ने अनेक गुरुकुल खोले, जिससे समाज में बेटियों को शिक्षा प्राप्त करने का एक शुभ अवसर मिला था। उन्होंने कहा कि दयानंद ने शिक्षा को इतना महत्व दिया कि अपने बच्चों को न पढ़ने वाले माता-पिता को शासन की ओर दंडित किए जाने का प्रस्ताव रखा था। यह आज भी भविष्य की आने वाली एक स्पष्ट तस्वीर के रूप में देखा जा सकता है।

कार्यक्रम के तहत मुख्य वक्ता डॉ. आशुतोष पारीक को सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग में प्रोफेसर आशीष भटनागर ने व मुख्य वक्ता अंकित प्रभाकर को प्रबंध अध्ययन संकाय के सहायक आचार्य आशीष पारीक ने व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अनिल कुमार शुक्ल को महर्षि दयानंद सरस्वती शोधपीठ के पूर्व निदेशक प्रोफेसर प्रवीण माथुर ने स्मृति चिन्ह भेंट किया।

व्याख्यान से पूर्व सामूहिक रूप से हवन का आयोजन किया गया जिसमें विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सहित विद्यार्थियों ने उत्साह केसाथ भाग लिया। व्याख्यान माला कार्यक्रम का संचालन महर्षि दयानंद सरस्वती शोध पीठ की निदेशिका प्रोफेसर ऋतु माथुर ने किया। व्याख्यान माला का प्रारंभ विश्वविद्यालय के कुल गीत के साथ हुआ तथा समापन राष्ट्रगान के साथ किया गया।

हिन्दुस्थान समाचार/संतोष/ईश्वर

   

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