जवाहर कला केन्द्र :कला प्रेमियों ने सुना 500 सालों से प्रचलित पारंपरिक कावड़ वाचन

जयपुर, 15 फ़रवरी (हि.स.)। जवाहर कला केन्द्र में गुरुवार को विशिष्ट आयोजन हुआ। दो समुदायों के सामंजस्य से पिछले 500 सालों से पल्लवित कावड़ सृजन और वाचन परम्परा पर विशेषज्ञों ने प्रकाश डाला और शहरी परिवेश में रहने वाले कला प्रेमियों ने इस लुप्तप्राय लोक कला के विषय में सारगर्भित जानकारी हासिल की। कला संसार मधुरम के अंतर्गत इस संवाद प्रवाह का आयोजन हुआ।

कावड़ निर्माण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित बस्सी, चित्तौड़गढ़ निवासी द्वारिका प्रसाद सुथार और वाचन परम्परा के अनुयायी जोधपुर की भोपालगढ़ तहसील स्थित सुदूर गांव से पहुंचे नरसी राम भाट इसमें बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए। विजुअल आर्ट और परफॉर्मिंग आर्ट की युवा कलाकार आशु और खुशी ने भी मंच साझा कर केन्द्र के अनुभव को सम्मान और नव को पहचान के ध्येय को संबल प्रदान किया। इसी के साथ 12 फरवरी से चल रही कावड़ निर्माण कार्यशाला का भी समापन हुआ। 18 प्रतिभागियों ने प्रशिक्षक द्वारिका प्रसाद और सह प्रशिक्षक गोविंद लाल सुथार से कावड़ निर्माण की बारीकियां सीखी।

नवीन विषयों पर भी कावड़ बना रहे सुथार

द्वारिका प्रसाद सुथार ने कावड़ निर्माण के तकनीकी पक्षों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भाट समुदाय के लोग अपने जजमानों के अनुसार कावड़ बनवाते थे। इन पर प्रारम्भ से धार्मिक कथाओं का चित्रण किया जाता रहा। वर्तमान में नवीन विषयों और रुचि के अनुसार पंचतंत्र, हितोपदेश, ट्रैफिक नियमों पर भी उन्होंने कावड़ बनायी है।

कपाट के साथ बदल जाती है कहानी

कावड़ वाचन सुनने को उत्सुक कला प्रेमियों की अभिलाषा नरसी राम भाट ने पूरी की। अपने साथ लायी गयी कावड़ पर अंकित 52 कथाओं को उन्होंने सुनाया। उन्होंने बताया कि कावड़िया भाट समुदाय का मुख्य कार्य अपने जजमानों की वंशावली तैयार करना और कावड़ वाचन है। नरसी राम का कहना है कि भाट समुदाय श्रवण कुमार का अनुयायी है और माना जाता है कि कावड़ परम्परा सतयुग से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि कावड़ पर चित्रों के रूप में कथा अंकित होती हैं, एक-एक कर पाट खुलते हैं और कहानी बदलती हैं। चित्रों के अनुसार पिंगल भाषा में कथा सुनाई जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि कावड़िया भाट आठ महीने घर से बाहर रहकर अपने जजमानों के यहां जाते हैं और कावड़ वाचन करते हैं। दान स्वरूप उन्हें अनाज, कपड़े, धन मिलता है उससे जीवन यापन करते हैं। इस दौरान नरसी राम भावुक हो गए, उन्होंने कहा कि कावड़िया भाट गलियों में घूमते रहते हैं, जवाहर कला केन्द्र ने कार्यशाला और संवाद प्रवाह के आयोजन से लुप्तप्राय कला को शहरों तक पहुंचाया और उन्हें मंच प्रदान कर अपनी पारम्परिक कला को प्रदर्शित करने का अवसर दिया। 55 वर्षीय नरसी भाट 15 वर्ष की उम्र से कावड़ वाचन कर रहे हैं। उनके परिवार के युवा भी इस परम्परा को आगे बढ़ रहे हैं।

रचनात्मकता से सराबोर कर रही कार्यशालाएं: श्रीमती गायत्री राठौड़

कला एवं संस्कृति विभाग की प्रमुख शासन सचिव और जवाहर कला केन्द्र की महानिदेशक गायत्री राठौड़ ने कहा कि केन्द्र की ओर से आयोजित कार्यशालाएं कला प्रेमियों को रचनात्मकता से सराबोर कर रही है। कावड़ निर्माण कार्यशाला और संवाद प्रवाह से लोक कलाकारों को मंच मिला और प्रदेश की लुप्तप्राय कला से आमजन को जुड़ने का अवसर मिला।

केन्द्र की अतिरिक्त महानिदेशक प्रियंका जोधावत ने कहा कि कावड़ निर्माण कार्यशाला के प्रति कला प्रेमियों का रुझान लोक कला की सुंदरता को जाहिर करता है। कावड़ वाचन जो प्राय: गांवों में प्रचलित है, उसे शहरों तक जवाहर कला केन्द्र ने पहुंचाया है। यह प्रयास है अनुभव को सम्मान और नव को पहचान देने के साथ कला के संरक्षण और संवर्धन का।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश सैनी/ईश्वर

   

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