खोई से होने लगा बिजली उत्पादन, ऊर्जादाता बन रहा अन्नदाता : प्रो. डी स्वाईन

कानपुर, 19 मार्च (हि.स.)। किसानों को अन्नदाता कहा जाता है, लेकिन जो किसान गन्ना से जुड़े हैं वह अब ऊर्जादाता भी बन रहे हैं। ऐसा इसलिए है कि किसान अपने खेतों में गन्ने की फसल उगाकर चीनी मिलों को सप्लाई करते हैं। वहां पर गन्ने की पेराई के बाद बचे अवशेष जिसे खोई कहा जाता है, उसके जरिये बिजली का उत्पादन भी किया जाने लगा है। यह बातें मंगलवार को राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर के निदेशक प्रो. डी स्वाईन ने कही।

देश के एकमात्र राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में गन्ना किसान संस्थान मुरादाबाद के नेतृत्व में 22 किसानों का एक दल संस्थान के भ्रमण के लिए पहुंचा। इनका मुख्य उद्देश्य गन्ना उत्पादन की आधुनिकतम तकनीकों एवं आधुनिक उन्नत प्रजाति के गन्ने की जानकारी करना था। कृषि रसायन के सहायक आचार्य डॉ. अशोक कुमार ने गन्ने की उपजाऊ प्रजातियों के साथ मिट्टी की जांच तथा उसके अनुरूप ऊर्वरकों के प्रयोग संबंधी सारगर्भित जानकारी दी। उन्होंने किसानों को कई उन्नत तकनीकों के बारे में भी बताया जिनका उपयोग कर किसान कम मेहनत और कम समय में ज्यादा कार्य कर सकते हैं।

कृषि रसायन के कनिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. लोकेश बाबर ने कम लागत में एवं अपेक्षाकृत कम क्षेत्रफल एवं कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली गन्ने की विभिन्न प्रजातियों के विषय में किसानों के दल को जानकारी दी। डॉ. बाबर ने गन्ना उत्पादन के दौरान आने वाली विभिन्न समस्याओं, गन्ने को नुकसान पहुंचाने वाले विभिन्न कीटों के उपचार आदि के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।

जैव रसायन अनुभाग प्रमुख प्रो. सीमा परोहा ने कहा कि अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग प्रकृति और खेत दोनों के लिए घातक हो सकता है। यह सिंचाई के दौरान पानी में मिलकर जमीन में जा रहा है जिससे भूजल बहुत अधिक दूषित हो रहा है और उससे तमाम बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। अब समय आ गया है कि किसानों को परंपरागत गोबर खाद और बायो कंपोस्ट की और ध्यान देना चाहिये। इसको अपनाने से हम मानव स्वास्थ्य और वातावरण दोनों की रक्षा कर सकते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/अजय/सियाराम

   

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