देश का सबसे बड़ा तीसरा जमींदार!

(संकु) सांबा के नड में आयोजित कार्यक्रम 'राष्ट्र के सामने चुनौतियां और उनके समाधान' में मुख्य वक्ता पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने वक्फ बोर्ड मुद्दा उठाकर इसे गर्माहट देने की कोशिश की है। इससे पहले भी वे सोशल मीडिया पर अपने बयानों तथा अन्य स्थानों पर पर जनसभाओं में भी इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। अभी तक आमजन को पता ही नहीं है कि वक्फ बोर्ड क्या है? आज हम इसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं, ताकि आम लोग भी देश के इस तीसरे सबसे बड़े जमीदार के बारे में सत्यता परख सकें। विश्व में वक्फ की शुरुआत इस्लामिक काल से मानी जाती है जिसे पैगंबर मुहम्मद ने स्थापित किया था। इस्लामी स्वर्ण युग के दौरान, इस्लामी बच्चों को छात्रवृत्ति और शिक्षा के विकास में वक्फ संस्थानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत में वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत की शुरुआत के समय मानी जाती है। सुल्तान मुइजुद्दीन सैम घोर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव वक्फ बोर्ड को दिए थे। ब्रिटिश राज को दौरान वक्फ को अमान्य घोषित कर दिया गया था। ब्रिटिश राज के चार न्यायाधीशों ने वक्फ को सबसे खराब प्रकार की शाश्वतता बताया था। हालांकि न्यायाधीशों के इस फैसले को स्वीकार नहीं किया गया। 1954 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम पारित किया गया था जिसके बाद वक्फ का केंद्रीकरण किया गया था। 1995 में हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्डों के गठन की अनुमति देने के लिए कानून में संशोधन किया गया।  कितनी हैरानी की बात है कि भारत में सशस्त्र बल और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड के पास ही सबसे ज्यादा जमीनें हैं। हालांकि गत वर्ष वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 को खत्म करने के लिए एक निजी विधेयक लोकसभा में पेश किया जा चुका है। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के डेटा के अनुसार देश में वक्फ बोर्ड के पास फिलहाल 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं, जो कुल मिलाकर 8 लाख एकड़ से ज्यादा है। 1954 में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने वक्फ अधिनियम पारित किया था, जिसके बाद वक्फ का केंद्रीकरण हुआ। अधिनियम के तहत, सरकार ने 1964 में एक केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की थी। ये कानून तब से ही चर्चाओं में है। हालांकि इस अधिनियम को मंजूरी 1955 में ही मिल गई थी।  इस वक्फ बोर्ड की ताकत ये है कि इस बोर्ड के मेंबर, सर्वेयर या कार्याधिकारी किसी भी संपत्ति को बोल देंगे कि ये संपत्ति उनकी है तो बोर्ड को ये साबित करने की जरूरत नहीं कि उसकी वो संपत्ति है या नहीं। इस एक्ट में ये प्रावधान है कि वक्फ बोर्ड के इस फैसले को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती चाहे उच्च न्यायालय हो या उच्चतम न्यायालय। भारत में वक्फ बोर्ड देश के तीसरे सबसे बड़े जमींदार के रूप में उभरकर सामने आया है। वक्फ की बात करें तो वो इस्लामिक कानून में एक प्रकार का इस्लामिक धर्मार्थ बंदोबस्त है। जहां एक संपत्ति का स्वामी अल्लाह को बना दिया जाता है और संपत्ति को स्थायी रूप से धार्मिक के कार्यों के लिए समर्पित किया जाता है। आसान भाषा में समझें तो जब कोई मुस्लिम अपनी संपत्ति दान कर देता है तो उसकी देखरेख का जिम्मा वक्फ बोर्ड के पास ही होता है। वक्फ बोर्ड के पास दान दी गई किसी संपत्ति पर कब्जा करने या वो संपत्ति किसी ओर को देने का अधिकार होता है। इस बोर्ड का काम देखने वालों को मुतावली कहा जाता है। वक्फ बोर्ड उन संपत्तियों की रक्षा करता है और ये निश्चित करता है कि उसके पास जो संपत्तियां है उनसे जो आय हो रही है उस संपत्ति से गरीब और जरूरतमंदों की मदद करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना और अन्य धर्म के कार्यों के लिए पैसे देने संबंधी चीजें शामिल हैं। किसी संपत्ति को लंबे समय से धर्म के कार्य के लिए इस्तेमाल में लिया जा रहा हो तो वो भी वक्फ बोर्ड के पास जाती है। इसमें ये नियम भी शामिल है कि यदि किसी संपत्ति को एक बार वक्फ बोर्ड को दे दिया जाता है तो उसे फिर वापस नहीं लिया जा सकता। सितंबर २०२२ में आम आदमी पार्टी के विधायक और दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अमानतुल्ला खान को वक्फ फंड की हेराफेरी और बोर्ड में अनियमितता के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वहीं बीते वर्ष फरवरी में केंद्र सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की 123 संपत्तियों को भी जब्त किया गया था। भाजपा नेता हरनाथ सिंह दावा करते हैं कि तमिलनाडु प्रदेश के त्रिचि जिले के गांव में डेढ़ हजार आबादी है, उसमें कुल 7-8 घर मुस्लिमो के हैं और पड़ोस में ही एक शंकर जी का डेढ़ हजार साल पुराना मंदिर है। वक्फ बोर्ड ने उस गांव की पूरी संपत्ति पर अपना दावा ठोक दिया और खाली करने का नोटिस कलेक्टर के यहां से आ गए। बाद में ग्रामीणों को मुस्लिम धर्म स्वीकार करने का सुझाव दिया गया कि अगर वो ऐसा कर लेंगे तब उनकी जमीन बच जायेगी। ऐसा ही एक वाक्या महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का है, जहां एक बस्ती में 250 करीब अनुसूचित वर्ग के लोग हैं उनके पास एक नोटिस उनकी जमीन को खाली करने का आया कि वो जहां रह रहे हैं वो वक्फ बोर्ड की है। वो दर-दर भटके तो उनको भी इस्लाम धर्म अपनाने का ऑफर किया गया। यानि कि वक्फ बोर्ड की आड़ में धर्मांतरण कराया जा रहा है। अब सवाल ये उठता है कि क्या किसी भी जमीन पर वक्फ बोर्ड अपना कब्जा घोषित कर सकता है? तो बता दें ऐसा नहीं है। वक्फ एक्ट 1995 की धारा 40 के मुताबिक, यदि वक्फ के सामने ऐसा कोई कारण होता है कि संबंधित संपत्ति पर उनका हक है तो बोर्ड द्वारा उस संपत्ति पर कब्जा जमाने वाले को नोटिस भेज दिया जाता है। वहीं एक्ट की धारा 3 के अनुसार, केवल उसी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित किया जा सकता है जो मुस्लिम लॉ की ओर से मान्यता प्राप्त किसी धार्मिक या चैरिटेबल कार्य के लिए दान दी जाती है। वक्फ बोर्ड को निरस्त करने के लिए दिसंबर २०२३ में भाजपा हरनाथ सिंह द्वारा प्रस्तुत  निजी सदस्य विधेयक विपक्ष के तीखे विरोध के बीच राज्य सभा में इंट्रोड्यूस हुआ। विधेयक इंट्रोड्यूस के पक्ष में 52 तथा विपक्ष में 32 मत पड़े। विधेयक विचारार्थ स्वीकार हुआ। 

   

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