चन्द्रशेखर के परिवार को दूसरी बार मिला भगवा का साथ, नीरज पर बीजेपी की हैट्रिक की जिम्मेदारी

बलिया, 10 अप्रैल (हि.स.)। एनडीए की तरफ से समाजवादी नेता व पूर्व पीएम चन्द्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर भाजपा प्रत्याशी घोषित किए गए हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि भगवा दल का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन चन्द्रशेखर के परिवार को मिला है। अब बलिया सीट पर भगवा की हैट्रिक लगाने की चुनौती नीरज शेखर को उठानी होगी।

बलिया संसदीय सीट पर 2014 में पहली बार भाजपा का कमल खिला था। उसके बाद लगातार दूसरी बार 2019 में भाजपा ने भगवा लहराया था। 2024 में इस सीट पर हैट्रिक लगाने की जिम्मेदारी पूर्व पीएम नीरज शेखर के कंधों पर है। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक नीरज शेखर इसके पहले 2007 के उपचुनाव और 2009 के आम चुनाव में लोकसभा सांसद रह चुके हैं। 2014 में हारने के बाद से अब तक दो बार राज्यसभा में पहुंचे हैं। जिसमें एक बार वह सपा तो फिलहाल भाजपा सदस्य के रूप में संसद के उच्च सदन में पहुंचे।

बात करें समाजवाद की उर्वर भूमि रही बलिया की तो यह पहला अवसर नहीं है जब भाजपा का भगवा ध्वज पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के परिवार के कंधों पर होगा। 1996 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने चन्द्रशेखर के समर्थन में प्रत्याशी खड़ा नहीं किया था। तब चन्द्रशेखर को आसान जीत मिली थी। हालांकि, बाद के चुनावों में भाजपा ने उनके सामने कड़ी चुनौती पेश की।

1998 के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी के रूप में रामकृष्ण मिश्र ने चंद्रशेखर के सामने थे। तब चंद्रशेखर को 260544 व रामकृष्ण मिश्र को 231060 मत मिले थे। इसके बाद तुरंत 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भी भाजपा दूसरे स्थान पर रही। चंद्रशेखर को उस वक्त भी विजय हासिल हुई थी। उन्हें 235946 वोट मिले थे। वहीं रामकृष्ण मिश्र को 180271 वोट ही प्राप्त हुए थे। अलबत्ता, 2004 में चंद्रशेखर को भाजपा के बजाय बसपा के कपिलदेव यादव ने दूसरे स्थान पर रहकर टक्कर दी। चंद्रशेखर को तब 270136 व बसपा को 189082 वोट मिले थे। भाजपा फो उस वक्त 109499 वोट ही मिले थे। इसके बाद चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में सपा ने चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर को अपना प्रत्याशी बनाया था। नीरज को उस चुनाव में 295736 वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर बसपा के विनयशंकर तिवारी ने रहते हुए 164450 मत हासिल किया था। भाजपा के वीरेन्द्र सिंह मस्त को मात्र 22723 मत ही मिले थे। 2009 के चुनाव में भी नीरज शेखर को विजय हासिल हुई थी। उन्हें 276649 मत मिले थे। इस बार भी उन्हें बसपा ही टक्कर दे पायी थी। बसपा के प्रत्याशी संग्राम सिंह यादव को 204094 वोट मिले थे। भाजपा के प्रत्याशी मनोज सिन्हा को 137740 वोट मिले थे। मनोज सिन्हा तीसरे स्थान से ही संतोष कर सके थे। लगातार सात साल तक सांसद रहते हुए नीरज शेखर ने बलिया के विकास में कई मील के पत्थर रखे। लेकिन मोदी की लहर पर बलिया के मतदाता इस कदर सवार हुए कि यहां विकास नजरअंदाज हो गया। पहली बार समाजवाद की धरती पर भगवा फसल लहलहा गयी।

बलिया में चन्द्रशेखर की संसदीय राजनीति का सफर

आपात काल के बाद जब 1977 में देश में आम चुनाव हुए तो दो बार से बलिया से चुनाव जीत कर संसद पहुंच रहे चंद्रिका प्रसाद जैसे मंझे हुए जमीनी नेता को चंद्रशेखर ने धूल चटा दी थी। उस समय पूरे देश में कांग्रेस को मात खानी पड़ी थी। इसके बाद 1980 में लगातार दूसरी बार जीत कर संसद पहुंचे थे। इसी प्रकार जब चंद्रशेखर ने बलिया के साथ-साथ पूरे देश में भी अपनी एक खास पहचान कायम कर ली थी तब उन्हें 1984 के चुनाव में जो कि इंदिरा की मौत के बाद समानुभूति की लहर के बीच हो रहे थे, में मात खानी पड़ी थी। हालांकि वह चुनावी मात चंद्रशेखर के लिए अंतिम रही। क्योंकि उसके बाद वे जीवन पर्यंत कभी पराजित नहीं हुए। 1991, 1996, 1998 और 2004 में जीत कर लोकसभा पहुंचते रहे।

अब तक के बलिया के सांसद

1952 में मुरली मनोहर, 1957 में राधामोहन, 1962 में मुरली मनोहर, 1967 में चंद्रिका प्रसाद, 1971 में चंद्रिका प्रसाद 1977 में चन्द्रशेखर, 1980 में चन्द्रशेखर 1984 में जगन्नाथ चौधरी, 1989 में चन्द्रशेखर, 1991 में चन्द्रशेखर 1996 में चन्द्रशेखर, 1998 में चन्द्रशेखर, 1999 में चन्द्रशेखर, 2004 में चन्द्रशेखर, 2009 में नीरज शेखर, 2014 में भरत सिंह और 2019 में वीरेन्द्र सिंह मस्त को जीत हासिल हुई थी।

हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/राजेश

   

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