यज्ञ से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है: प्रो. बिहारी लाल शर्मा

-सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में संवत्सरव्यापी चतुर्वेद स्वाहाकार विश्वकल्याण महायज्ञ

वाराणसी, 11 अप्रैल (हि.स.)। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में संवत्सरव्यापी चतुर्वेद स्वाहाकार विश्वकल्याण महायज्ञ के तहत हवनात्मक शतचण्डी यज्ञ चल रहा है। विश्वविद्यालय एवं विश्वविद्यालय विकास समिति की पहल पर वेद विभाग के आचार्य डॉ विजय कुमार शर्मा के आचार्यत्व में चल रहे शतचंडी यज्ञ में 11 वैदिक ब्राह्मण पूर्ण वैदिक विधान के अनुसार इसे संचालित कर रहे है। गुरुवार को विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने शतचंडी यज्ञ में पूजा एवं आहुति प्रदान किया।

प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि देश सम्पूर्ण विश्व का नेतृत्व करने के लिए अग्रसर है। इस प्रकार के पवित्र कार्यक्रमों से अवश्य ही देश शीर्षोन्नति को प्राप्त कर विश्वगुरु की पदवी को प्राप्त करेगा तथा सम्पूर्ण विश्व का नेतृत्व करेगा। इस संस्था के लोगों के जिम्मेदारी सबसे अधिक है, जिनके माध्यम से भारतीय ज्ञान परम्परा का प्रचार-प्रसार दुनिया में करते हुए इसके महत्व को भी बताना होगा। आज पुनः प्राच्यविद्या के इस ज्ञान के आधार पर भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यज्ञ से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। धार्मिक अनुष्ठान करते समय देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में चल रही कई तरह की बाधाएं खत्म हो जाती हैं। हिंदू धर्म में अलग-अलग कामनाओं के लिए विशेष पूजा-पाठ का विधान है।

कुलपति ने कहा कि शास्त्रों में कहा गया है कि माता से पुत्र कुछ भी कामना करता वह अवश्य ही पूर्ण होती है। मां दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है और माँ दुर्गा जी को प्रसन्न कर कामनाओं की पूर्ति के लिए कई प्रकार के अनुष्ठान विधान कहे गए हैं। उन्हीं में एक मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष अनुष्ठान है शतचण्डी महायज्ञ। शतचंडी महायज्ञ को बहुत ही प्रभावशाली और शक्तिशाली यज्ञ माना जाता है उसमें भी हवनात्मक हो तो और उत्तम माना जाता है। आचार्य डॉ. विजय कुमार शर्मा के अनुसार सनातन हिंदू धर्म में शतचण्डी, नवचंडी महायज्ञ,यज्ञ एक बेहद शक्तिशाली, असाधारण और बड़ा यज्ञ होता है। इस यज्ञ में शुद्व उच्चारण करने वाले योग्य वैदिक ब्राह्मणों से ही करवाने का विधान है। शतचंडी महायज्ञ में दुर्गासप्तशती के 700 श्लोकों का 100 पाठ व उनसे हवन भी किया जाता है। इससे जन्मपत्रिका में स्थित अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है। सौभाग्य में वृद्धि होती है। शतचंडी यज्ञ के आयोजन से शत्रुओं का नाश होता है और कार्यक्षेत्र में आने वाली बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। व्यापार में वृद्धि, संतान प्राप्ति, संस्थान की उन्नति, शत्रुनाश, शिक्षा में अभिवृद्धि आदि अनेक मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उन्होंने बताया कि यज्ञ से विश्वविद्यालय की अभ्युन्नति एवं जनसमुदाय में सामंजस्यता स्थापित होकर देश के नेतृत्व के लिए ऐक्यता स्थापित होगी।

इस अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो. महेन्द्र पाण्डेय, प्रो. सुधाकर मिश्र, प्रो. दिनेश गर्ग, प्रो. रामपूजन पाण्डेय, प्रो. अमित कुमा शुक्ल, प्रो. हरिशंकर पाण्डेय, प्रो. शैलेश मिश्र, डॉ. ज्ञानेंद्र सापकोटा, डॉ सत्येन्द्र, जनसम्पर्क अधिकारी डॉ शशीन्द्र मिश्र आदि भी मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश

   

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