करौली-धौलपुर : कांग्रेस और भाजपा ने किए अपनी-अपनी जीते के दावे

धौलपुर , 24 अप्रैल (हि.स.)। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में देश एवं प्रदेश के साथ पूर्वी राजस्थान की करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर भी 19 अप्रैल को मतदान हो चुका है। मतदान के बाद में अब कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। हालांकि करौली-धौलपुर सीट की मतगणना भी पूरे देश के साथ में चार जून को ही होगी, लेकिन तब हर आम और खास से लेकर गली और चौराहों पर चुनावी परिणाम की चर्चा है। बीते चुनाव की तुलना में इस बार मतदान कम होने के कारण भी चुनावी हार-जीत के दावों में रोचकता के साथ-साथ शंका और आशंका भी दौर चल पडा है।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर इस बार मतदान का प्रतिशत महज 49.59 रहा है। यह प्रतिशत बीते लोकसभा चुनाव की तुलना में करीब 6 प्रतिशत कम है। मतदान का प्रतिशत कम होने को लेकर राजनीति के जानकारों के अलग-अलग मत सामने आ रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के कारण इस सीट पर सवर्ण मतदाताओं ने मतदान के प्रति अपनी ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। जिसके चलते मतदान का प्रतिशत कम रहा। राजनीति में प्रचलित मान्यता के चलते सवर्ण मतदाताओं का समर्थन भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में होने को देखते हुए मतदान का आंकडा कम होने को भाजपा को नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है।

इसके उलट कुछ लोगों का यह भी मानना है कि देश में मोदी की लहर के चलते मतदाताओं को देश के साथ-साथ करौली-धौलपुर सीट पर भाजपा की जीत की उम्मीद रही। जिसके चलते मतदाताओं ने मतदान केन्द्र तक जाने और मतदान करने की जहमत नहीं उठाई। इसके अलावा करौली-धौलपुर सीट भाजपा की परंपरागत सीट होने के कारण भी इसी संभावना को बल मिलने की बात के चलते मतदान का आंकडा कम ही रहा। इसके साथ ही गर्मी और विवाह का सीजन होने के कारण कम तादाद में मतदाता मतदान करने पंहुचे। जिससे मतदान का प्रतिशत बीते चुनाव की तुलना में कम रहा। इसको किसी भी पार्टी की हार और जीत से जोड कर देखना उचित नहीं होगा।

करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी भजनलाल जाटव की जीत के दावे के संबंध में धौलपुर कांग्रेस जिला अध्यक्ष साकेत बिहारी शर्मा ने बताया कि बीते दस सालों में मोदी सरकार ने कोई काम नहीं किया। जिसको लेकर लोगों में उदासीनता रही और वह वोट डालने नहीं पहुंचे। जिसके चलते ही बीते लोकसभा चुनाव की तुलना में इस चुनाव में मतदान का प्रतिशत कम रहा। शर्मा ने कहा कि इसके उलट कांग्रेस के प्रति समर्थन रखने वाली पिछड़ा एवं दलित वर्ग की जातियों ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर वोट डाले। जिसके चलते भी करौली-धौलपुर सीट पर कांग्रेस की जीत की दावा मजबूत है। शर्मा ने कहा कि करौली-धौलपुर सीट के साथ-साथ कमोबेश पूरे राजस्थान में यही स्थिति है। यही वजह है कि कांग्रेस इस बार बीते दो लोकसभा चुनाव के उलट राजस्थान में बेहतर प्रदर्शन करेगी।

वहीं, करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी इंदु देवी जाटव की जीत के संबंध में धौलपुर भाजपा के जिला अध्यक्ष सत्येंद्र पराशर ने बताया कि करौली-धौलपुर भाजपा की परंपरागत सीट है। जिसके चलते इस सीट भाजपा का दावा मजबूत है। पराशर ने बताया कि पूरे देश में मोदी लहर है तथा बीते दस सालों में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किए गए कार्यों के दम पर भाजपा करौली-धौलपुर सीट के साथ-साथ पूरे देश में चार सौ का आंकड़ा पार करेगी। इस लोकसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत कम होने के सवाल पर पाराशर ने कहा कि गर्मी और विवाह का सीजन होने के कारण यह आंकड़ा कम हुआ है।

करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर मतदान के इतिहास पर गौर करें,तो वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद बनी करौली-धौलपुर सीट पर वर्ष 2009 में हुए पहले चुनाव में मतदान का प्रतिशत महज 37.4 रहा था। वर्ष 2014 में 54.62 प्रतिशत मतदान हुआ,जो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 55.12 प्रतिशत तक जा पहुंचा। लेकिन स्वीप गतिविधियों के जरिए मतदान का प्रतिशत बढाने की तमाम कोशिशों के बाद भी इस बार मतदान का प्रतिशत महज 49.59 ही रहा है। इस प्रकार आंकडों के लिहाज से करौली-धौलपुर सीट पर बीते चुनाव की तुलना में मतदान करीब छह फीसदी कम रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार/ प्रदीप/संदीप

   

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