गोगा महाराज महोत्सव, ग्रामीण सांस्कृतिक चेतना का अद्वितीय उदाहरण: राज्यपाल

• प्राकृतिक खेती अपनाएंगे, देसी गौ माता का पालन करेंगे और जीवन लेने वाले नहीं, जीवन देने वाले बनेंगे

अहमदाबाद, 08 अप्रैल (हि.स.)। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने मंगलवार को कहा कि भारत की भूमि संत-महात्माओं, ऋषि-मुनियों और तपस्वियों की भूमि रही है। यह आध्यात्मिक चेतना, सहिष्णुता, भाईचारे और सांस्कृतिक मूल्यों की परंपरा की वाहक रही है। गुजरात सहित समस्त भारतवर्ष ने सदा ही न केवल देश को बल्कि पूरे विश्व को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मार्गदर्शन प्रदान किया है।

सरढ़व गांव की पावन भूमि पर गोगा महाराज महोत्सव के पावन अवसर पर आयोजित भव्य कार्यक्रम में राज्यपाल मौजूद रहे। राज्यपाल ने कहा कि वेदों में कहा गया है, ‘एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति’। अर्थात परमात्मा एक ही है, परंतु लोग उसे विभिन्न नामों और स्वरूपों में पूजते हैं। यही भारत की विशेषता है कि यहां न केवल देवताओं में, बल्कि समस्त जीव-जंतुओं में भी दिव्यता का अनुभव किया जाता है। नदियों, वृक्षों, पशु-पक्षियों और प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश मानने वाली यह संस्कृति संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने गोगा महाराज महोत्सव को युवा पीढ़ी के लिए एक आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बताते हुए कहा कि इससे न केवल धार्मिक भावनाओं का जागरण होगा बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों का भी संरक्षण होगा।

अपने सम्बोधन में राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कृषि और पशुपालन से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि वह स्वयं भी एक किसान हैं और आज भी प्राकृतिक खेती तथा पशुपालन को करते हैं। उन्होंने कहा कि वह हरियाणा स्थित करनाल के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में वर्षों तक अपनी गायों को लेकर जाते रहे हैं, जहां उनकी गायें दुधारू प्रतियोगिताओं में प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त करती रही हैं। विशेष रूप से प्राकृतिक खेती के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि कई किसान भाईयों में यह भ्रम होता है कि प्राकृतिक खेती से उत्पादन में कमी आती है, जबकि यह पूर्णतः गलत धारणा है। प्राकृतिक खेती रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से मुक्त होती है और इसकी प्रेरणा हमें स्वयं प्रकृति से मिलती है। जंगलों में बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के हजारों पेड़-पौधे पनपते हैं, फलते-फूलते हैं और उनमें किसी भी पोषक तत्व की कमी नहीं होती। प्राकृतिक खेती इसी सिद्धांत पर आधारित है। हमें अपने खेतों में वही नियम लागू करने की आवश्यकता है जो प्रकृति में स्वतः विद्यमान हैं। राज्यपाल ने ग्रामवासियों से आग्रह किया कि वह अपने बच्चों को धर्म, संस्कृति और प्रकृति से जोड़ने का निरंतर प्रयास करें, ताकि भावी पीढ़ी न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध हो, बल्कि पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील बन सके।

गोगा महाराज महोत्सव के पावन अवसर पर आयोजित समारोह में आज राज्यपालश्री ने ग्रामवासियों को संबोधित करते हुए प्राकृतिक खेती के महत्व, बढ़ती बीमारियों के कारणों और भारत सरकार द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों पर प्रकाश डाला। आचार्य देवव्रत ने कहा हमारे देश की परंपरा रही है कि हम धरती माता को पूजते हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों में आधुनिक खेती की दिशा में हुए बदलावों ने धरती को जहरीला बना दिया है। रासायनिक खेती में यूरिया, डीएपी, कीटनाशक आदि का उपयोग केवल मिट्टी को ही नहीं, हमारे शरीर को भी विषाक्त बना रहा है। यही कारण है कि आज समाज में कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियां तेज़ी से बढ़ रही हैं। एक शोध का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि राजस्थान की एक महिला वैज्ञानिक ने हाल ही में नवजात शिशुओं पर शोध किया, जिनके रक्त में पेस्टिसाइड्स की मौजूदगी पाई गई। यह सिद्ध करता है कि हमारी माताएं जो दूध पिला रही हैं, वह भी दूषित है क्योंकि गाय-भैंस को जहरीला चारा और कीटनाशकों वाला आहार दिया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा प्रारंभ किए गए राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन की सराहना करते हुए राज्यपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इस संकट को समझते हुए प्राकृतिक खेती को राष्ट्रीय आंदोलन बना दिया है। उनके नेतृत्व में 14 सौ करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि इस मिशन के लिए रखी गई है। आज गुजरात में 9.5 लाख से अधिक किसान प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं जो एक क्रांतिकारी परिवर्तन है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में बाहर से कुछ नहीं लाना पड़ता। न यूरिया, न डीएपी, न कीटनाशक। प्राकृतिक खेती देसी गाय पर आधारित है। केवल एक देसी गाय के माध्यम से बीजामृत, जीवामृत, घन जीवामृत, आच्छादन और मिश्रित फसल सहित पांच आयाम पूरे किए जा सकते हैं। यही पांच नियम प्राकृतिक खेती के मूल स्तंभ हैं। इससे भूमि उपजाऊ बनती है, उत्पादन शुद्ध होता है और स्वास्थ्य उत्तम होता है।

उन्होंने कहा कि जैसे जंगलों में कोई खाद या कीटनाशक नहीं डाले जाते, फिर भी वहां की वनस्पतियां हरी-भरी और शक्तिशाली होती हैं, वैसा ही प्रभाव हम अपने खेतों में ला सकते हैं। जो किसान ईमानदारी से इन पांच नियमों का पालन करते हैं, उन्हें कम लागत में अधिक और शुद्ध उत्पादन प्राप्त होता है। बालकों के संस्कार और शिक्षा पर विशेष बल देते हुए राज्यपाल ने कहा कि आज की सबसे बड़ी पूंजी है संस्कारवान संतान। यदि आपने बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा, अच्छे संस्कार दिए हों, तो उन्हें धन की आवश्यकता नहीं, वह स्वयं समाज और राष्ट्र की संपत्ति बन जाएंगे। लेकिन यदि वह व्यसनों में पड़ गए, तो आप जितनी भी संपत्ति छोड़ दें, सब नष्ट हो जाएगी।

समारोह के अंत में राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा, “मैं गोगा महाराज के इस पावन अवसर पर आप सभी के मंगलमय भविष्य की कामना करता हूं। ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आपके जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और आनंद का वास हो। आप सब मिल कर इस पुण्य अभियान प्राकृतिक खेती और नैतिक जीवन को अपनाकर समाज को एक नई दिशा दें।”

इस कार्यक्रम में शिक्षा मंत्री डॉ. कुबेरभाई डींडोर, गांधीनगर उत्तर की विधायक रीताबेन पटेल, पूर्व सहकारिता मंत्री वाडीभाई पटेल, सरढव ग्राम पंचायत के सरपंच किरीटभाई पटेल, धर्मगुरु गादी, टिंटोड़ा के महंत लखीरामजी बापू, गोगाधाम सरढव के लालजीभाई रबारी सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति, आमंत्रित अतिथि तथा भारी संख्या में किसान भाई-बहनें उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय

   

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