संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण में नागरिक समाज का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण : डॉ. मुद्गल
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- Feb 08, 2025
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-दून पुस्तकालय में द्वितीय सुरजीत दास स्मारक व्याख्यान, जनहित याचिकाओं पर हुई चर्चा
देहरादून, 8 फ़रवरी (हि.स.)। दून पुस्तकालय एवं शोध की ओर से केन्द्र के सभागार में आज उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव और दून पुस्तकालय के संस्थापक संरक्षक स्व. सुरजीत दास (1949-2023) की 76 वीं जयंती पर द्वितीय स्मारक व्याख्यान का आयोजन कर उन्हें याद किया गया।
इस व्याख्यान का विषय था - सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में जनहित याचिकाएं : नागरिक समाज का अनुभव। मुख्य वक्ता डॉ. विपुल मुदगल ने कहा कि जनहित याचिकाएं (पीआईएल) नागरिक हस्तक्षेप का एक बेहतरीन उदाहरण हैं। उन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने और 2 जी स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लॉक आवंटन के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसलों सहित कई उदाहरणों का हवाला दिया।
उन्होंने कहा कि 25 साल पहले दायर एक जनहित याचिका की बदौलत मतदाता चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास, वित्तीय संपत्तियों और शैक्षणिक योग्यताओं के बारे में जानते हैं। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता के बिना ’स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव’ का कोई अर्थ नहीं है।
डॉ. मुद्गल ने कहा कि आपातकाल के बाद की भारतीय राजनीति में ’पीआईएल’ और ’न्यायिक सक्रियता’ जैसे शब्दों का प्रचलन तब बढ़ा जब नागरिक स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्होंने कहा कि भारत में आपातकाल लागू करना संस्थागत विफलता का एक उदाहरण था और भारत ऐसी विफलताओं को दोहराना बर्दाश्त नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, आज के भारत में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हमारी न्यायपालिका और स्वतंत्र संस्थानों की रक्षा करना और उन्हें मजबूत करना है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का भविष्य विचारधाराओं की परवाह किए बिना नागरिक भागीदारी पर निर्भर करता है और संवैधानिक मूल्यों और सुशासन को सुरक्षित रखने के लिए नागरिक समाज का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण है।
डॉ. मुद्गल ने चेतावनी देते हुए कहा कि जनहित याचिकाएं ज़रूरी हैं लेकिन निरंतर सामाजिक बदलाव के लिए पर्याप्त नहीं हैं। उन्होंने उत्तराखंड में चारधाम सड़क परियोजना का उदाहरण देते हुए कहा कि नागरिकों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा दायर कई जनहित याचिकाओं के बावजूद हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी के लिए ख़तरा बनी हुई है। उन्होंने श्रोताओं को स्मरण कराया कि स्वतंत्रता का मूल्य हमेशा सतर्क रहना होता है। उन्होनें यह भी कहा कि मजबूत नागरिक समाज के अलावा सामाजिक परिवर्तन के लिए निष्पक्ष न्यायपालिका, सक्रिय मीडिया, जागरूक नागरिक और सक्षम कानूनों की पारिस्थितिकी की आवश्यकता होती है।
व्याख्यान के आरम्भ में सुरजीत दास के चित्र पर माल्यापर्ण कर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दी गई। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सलाहकार और अध्यक्ष प्रो. बीके जोशी ने स्वागत उद्बोधन में सुरजीत दास के दून पुस्तकालय की स्थापना में योगदान के बारे में बताया।
इस अवसर पर पूर्व प्रमुख सचिव, उत्तराखंड विभापुरी दास, सामाजिक विचारक व लेखिका गीता सहगल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन गांधीवादी चिंतक बिजू नेगी ने किया।
इस अवसर पर सभागार में पूर्व मुख्य सचिव नृप सिंह नपलच्याल, डॉ.रवि चोपड़ा, आलोक सरीन,देवेंद्र, बिनीता शाह, कांडपाल , वीणा जोशी, कर्नल एस एस रौतेला, हिमांशु आहूजा, चन्द्रशेखर तिवारी, विजय भट्ट, सुंदर सिंह बिष्ट, जे बी गोयल, जगदीश महर, अभि नंदा, योगिता थपलियाल, सहित शहर के अनेक सामाजिक विचारक, लेखक, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, पुस्तकालय के सदस्य और युवा पाठक उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pokhriyal