-प्रदीप कुमार वर्मा
धौलपुर, 14 जनवरी (हि.स.)। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के साझा चंबल के बीहड़ में बागियों की शरण स्थली के साथ-साथ बलुआ पत्थर के लिए प्रसिद्ध धौलपुर की पहचान यहां की शाही गजक के रूप में भी है। सर्दी के मौसम में बनाई जाने वाली यह गजक हर उम्र के लोगों को खासी पसंद आती है। धौलपुर शहर के साथ-साथ जिले के मनियां,बाडी और बसेडी सहित कई कसबों में भी गजक बनाई जाती है। जिला मुख्यालय पर पुराने धौलपुर शहर का कोटला इलाका गजक निर्माण का सबसे बडा सेंटर है। कई दशकों से पुराने परिवार इस पुश्तैनी काम के जरिए अपनगगुजर कर रहे हैं। धौलपुर की शाही गजक की दीवानगी का आलम ऐसा है कि गुड और चीनी के साथ तिल को मिलाकर कूटने के बाद बनी इस गजक की मिठास अब देश और प्रदेश के साथ-साथ सात समंदर पार तक जा पहुंची है।
धौलपुर में गजक के निर्माण के अतीत पर गौर करें,तो रियासतकाल से ही धौलपुर में तिल की कुटेमा गजक बनाई जा रही है। धौलपुर के पुराने शहर के कोटला इलाके में गजक बनाने वाले अजीज भाई बताते हैं कि बाप और दादा के समय से चला आ रहा गजक बनाने का यह काम पुश्तैनी है। हमारे यहां से दिल्ली, आगरा, ग्वालियर सहित कई जगह के लोग अपने रिश्तेदारों के यहां गजक लेकर जाते हैं। इसके साथ ही धौलपुर जिले से ताल्लुक रखने वाले मुस्लिम समाज के लोग बड़ी संख्या में रोजी रोजगार के सिलसिले में विदेश में रहते हैं। यही वजह है कि अब इन्हीं लोगों के जरिए धौलपुर कर गजक की देश और प्रदेश की सीमाओं से परे दुबई,ईरान,पाकिस्तान एवं कुवैत समेत अन्य खाड़ी देशों तक अपनी पंहुच बना चुकी है।
सिख समाज से ताल्लुक रखने वाले धौलपुर के लोग भी अमेरिका,लंदन,इटली और कनाडा जैसे देशों में बीते कई दशकों से काम तथा बिजनेस के सिलसिले में विदेशी धरती पर अपना मुकाम बना चुके हैं। ऐसे में यही लोग भारत से वापसी के समय खुद तथा वहां रहने वाले अपने रिश्तेदारों के लिए उपहार एवं स्मृति स्वरूप धौलपुर की गजक ले जाते हैं। इसके अलावा रूस एवं यूक्रेन तथा अन्य देशों में डाक्टरी की पढ़ाई पढ़ने वाले धौलपुर तथा आसपास के युवा भी वहां की फैकल्टी तथा अपने साथी लोगों के लिए धौलपुर की गजक ले जाना नहीं भूलते हैं। यही वजह है कि चंबल की धरती के नाम से चर्चित पूर्वी राजस्थान के एक छोटे से धौलपुर जिले की गजक गजक की मिठास अब सात समंदर तक पहुँच चुकी है।
गजक के निर्माण से जुड़े लोग बताते हैं कि गजक बनाने के लिए पहले तिली को साफ किया जाता है। उसके बाद गुड़ या चीनी को भी छानकर साफ किया जाता है। भट्टी पर एक कड़ाही में करीब दो किलो चीनी व ढाई सौ ग्राम गुड़ आधा लीटर पानी डालकर पकाया जाता है। कुछ देर ठंडा होने के बाद उसे दीवार पर लगी खूंटी से बार-बार खींच कर तैयार किया जाता है। उसे भट्टी पर गरम-गरम साफ तिल्ली में डाल दिया जाता है। फिर टुकड़े-टुकड़े करके तिली में मिलाकर उसे लकड़ी के बने हथौड़े से कूटा जाता है। तब जाकर लोगों की जुबान पर राज करने वाली तिली की कुटेमा धौलपुर की शाही गजक बनती है।
ऐसे तो धौलपुर की गजक का कोई नामचीन ब्रांड नहीं है। लोग सादा पैकिंग में ही यहाँ के पुराने लोगों से परंपरागत रूप से घरों में कारीगरों द्वारा गुड और चीनी से निर्मित गजक खरीदते हैं। लेकिन इन दिनों धौलपुर की शाही गजक के नाम से गजक खासी मशहूर हो रही है। धौलपुर में तिली की कुटेमा गजक की कीमत बाजार में 200 से लेकर 300 रुपए प्रति किलो तक है। बीते कई सालों से गजक निर्माण में लगे लोगों को गजक बनाने में खासा मुनाफा भी मिलता है। जानकार बताते हैं कि 300 रुपए की बिक्री होने वाली गजक में करीब 150 से 200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से लागत आती है। इस प्रकार से गजक के निर्माण और बिक्री में लगे परिवारों के लिए यह फायदे का सौदा है।
सर्दी के मौसम में गजक का सेवन सेहत के लिए भी मुफीद माना जाता है। पूर्वी राजस्थान के धौलपुर जिले सहित मध्य प्रदेश के मुरैना एवं ग्वालियर तथा उत्तर प्रदेश के आगरा एवं मथुरा इलाके में मकर संक्रांति के मौके पर तिल और गुड़ के व्यंजनों के रूप में गजक को अपने बड़ों के लिए छिड़कने तथा एक दूसरे को उपहार में देने का खासा चलन है। जानकार बताते हैं कि सर्दी में तिल और गुड़ दोनों का खास महत्व है। इसलिए गजक के सेवन से शरीर में गर्मी रहती है और सर्दी से बचाव की क्षमता बढ़ती है। धौलपुर के साथ-साथ देश और दुनियां में अपनी मिठास से दीवाना बनाने वाली धौलपुर की गजक को अभी भी औद्योगिक रूप से पहचान मिलना बाकी है। जरूरत इस बात की भी है कि शासन और सरकार सहित कुछ औद्योगिक घराने इस दिशा में सकारात्मक पहल करें, जिससे धौलपुर के गजक उद्योग को संबल मिल सके।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रदीप