विज्ञान और साहित्य की सहस्थिति से विकास की दिशा बदली जा सकती है : प्रो. एके भागी 

नई दिल्ली, 13 नवंबर (हि.स.)। श्री गुरु तेग बहादुर खालसा महाविद्यालय, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ‘साहित्य की शती उपस्थिति: रामदरश मिश्र’ के द्वितीय और अंतिम दिन बुधवार को रामदरश मिश्र के साहित्य को लेकर वरिष्ठ साहित्यकारों और आलोचकों ने अपने विचार व्यक्त किये।

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डा ए.के. भागी ने कहा कि विज्ञान ने साहित्य मन से विकास किया होता तो आज विकास की स्थिति मानव कल्याण से ओतप्रोत होती और मानव कई समस्याओं से बच जाता। उन्होंने कहा कि विज्ञान और साहित्य की सहस्थिति से विकास की दिशा बदली जा सकती है।

के. के बिड़ला फाउंडेशन के निदेशक सुरेश ऋतुपर्ण ने कहा हिंदी जगत को खालसा कॉलेज की संगोष्ठी से सीखने की जरूरत है । नार्वे के वरिष्ठ कवि एवं नाटककार शरद आलोक ने रामदरश मिश्र की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा कि कविता मनुष्यता का राग है। कविता हमें शेष जगत से जोड़ती है।

श्याम लाल कॉलेज के प्रो. सत्यप्रिय पाण्डेय ने कहा कि मिश्र बड़े संवेदनशील कवि हैं। प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक डॉ. ओम निश्चल ने कहा कि गीत की एक लंबी परंपरा में मिश्र एक पुष्प की तरह हैं।

हिंदी विभाग के प्रो. अनिल राय अधिष्ठाता, अंतरराष्ट्रीय संबंध, समाज विज्ञान एवं मानविकी संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय ने रामदरश मिश्र का कथा साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है और वह पिछलग्गू नहीं है बल्कि विचारधाराओं के खांचें की चारदीवारियों को तोड़ते हैं। गांव उनके साहित्य में ऊपर से ओढ़ा हुआ नहीं है बल्कि हर क्षण उनके साथ चलता हुआ है।

हिंदी जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर चंद्रदेव यादव ने कहा कि मिश्र के उपन्यासों में स्थानीय रंग दिखता है।

अंजुम शर्मा ने कहा कि अपने कथा साहित्य से मिश्र अहम् से वयम् की यात्र करते हैं। मिश्र के कथा साहित्य में स्त्री का असहाय स्त्री का पिरामिड उलटा होता दिखता है।

प्रो. स्मिता मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि गांव के परिवेश ने रामदरश को गढ़ा है। मिश्र की यात्रा ‘स्व’ से ‘पर’ की यात्रा है। ‘कंधे पर सूरज’-काव्य संग्रह में उनका पूरा व्यक्तिव पा सकते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

   

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