रासायनिक खेती सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक

गोपालगंज, 15 मई (हि.स.)। अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका है। कृषि न केवल हमारी आर्थिक उन्नति की राह को सुगम बनाती है, बल्कि हमारी सामाजिक व आध्यात्मिक उन्नति का भी साधन है। कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में किसानों के बढ़ते लालच ने इसमें विष घोल दिया है। एक समय था जब हरित क्रांति के दौर में रसायनों ने कृषि में चार चांद लगा दिए थे लेकिन किसानों की बढ़ती महत्वाकांक्षा व सीमित भूमि में अधिक उत्पादन के लालच के चलते रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग शुरू कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि आज वातावरण प्रदूषित हो चला है।

रसायनिक खाद प्रयोग कर मिट्टी, जल यहां तक कि हवा को भी जहरीला बना दिया है।गंडक नदी किनारे की जमीन बहुत अधिक उपजाऊ है। बावजूद इसके यहां अधिक उपज के लिए किसान रासायनिक खाद का धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे हैं। इस फसल के सेवन से कैंसर, हार्ट अटैक, एलर्जी समेत कई तरह की बीमारियां होने लगीं हैं। सदर अस्पताल के ओपीडी का रिकार्ड को देखा जाए तो इस बीमारी से ग्रस्ति रोगियों की संख्या दिन ब दिन बढ रही है। यूरिया, डीएपी, एसएसपी, पोटेशियम सल्फेट, अमोनियम सल्फेट जैसे केमिकल खाद के रूप में उपयोग किए जा रहे हैं। इसी तरह केमिकल से बने जहरीले कीटनाशक और पादप रोगनाशी भी है जैसे 2-4डी, डीडीभीपी, फोरेट, डाई क्लोरवोस, मोनोक्रोटोफोस, ग्लायफोजेट, पैराकवेट आदि है। कुछ तो इनसे भी ज्यादा हानिकारक है जो अधिकतर सब्जी वाली फसलों में प्रमुख रूप से उपयोग में लाया जाता है। उसे छिड़कने वाले भी गंभीर रूप से बीमार हो जाते है। कई बार तो किसान की मौत तक हो गई है। केमिकल के हानिकारक तत्व हवा के जरिए शरीर के अंदर पहुंचकर नुकसान पहुंचाते हैं। जब किसान इन हानिकारक पेस्टिसाइड का उपयोग फसल पर करता है तो इसका असर पौधों और मिट्टी के अंदर तक होता है।

मिट्टी के अंदर केमिकल छिड़काव का असर 20-25 दिनों तक बहुत अच्छे स्तर पर बना होता है। फसल कटाई के कम से कम 15 दिन पहले तक किसी भी प्रकार के केमिकल का उपयोग नहीं करना चाहिए, लेकिन किसान इसका सही से पालन नहीं कर रहे हैं। ज्यादातर किसान फसल के बाजार में जाने के एक दिन पहले तक केमिकल का उपयोग करते रहते हैं। इसी कारण ये हमारे शरीर में पहुंचता है, जिससे हमें कैंसर, हार्ट अटैक, एलर्जी आदि बहुत से रोग आसानी से हो जाते हैं।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों के अधिक मात्रा में उपयोग से न सिर्फ फसल प्रभावित होती है बल्कि इससे जमीन की सेहत, इससे पैदा होने वाली फसल को खाने वाले इंसानों और जानवरों की सेहत के साथ ही पर्यावरण पर भी बेहद प्रतिकूल असर पड़ता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल के कारण देश की 30 फीसदी जमीन बंजर होने के कगार पर है। यूरिया के इस्तेमाल के दुष्प्रभाव के अध्ययन के लिए वर्ष 2004 में सरकार ने सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की स्थापना की थी। उसने भी कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल में कटौती नहीं की गई तो मानव जीवन पर इसका काफी दुष्प्रभाव पड़ेगा। उनके मुताबिक, खाद्यान्नों की पैदावार में वृद्धि की मौजूदा दर से वर्ष 2025 तक देश की आबादी का पेट भरना मुश्किल हो जाएगा।

हिन्दुस्थान समाचार/ अखिला/चंदा

   

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