आत्मा की उन्नति के लिए एक क्षण व्यर्थ न जाए : आचार्य ममगाईं

देहरादून, 27 मई (हि.स.)। आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं ने कहा कि यदि हम अपनी आत्मा की वास्तविक उन्नति चाहते हैं तो जीवन को इस प्रकार ढालना होगा, जिससे सारे कार्य करते हुए एक क्षण का समय नष्ट किये बिना निरंतर भगवान का चिंतन और भागवत सेवा करते रहें जिससे ऐसा अभ्यास हो जाये कि हर समय परमात्मा का स्मरण बना रहे।

कथा वाचक शिव प्रसाद मोहनपुर प्रेम नगर में डोभाल परिवार की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दौरान बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यह मानव योनि सबसे विकसित तभी समझी जाती है, जब इसमें पूर्ण आत्मज्ञान के साथ आध्यात्म ज्ञान की चेतना हो। प्राकृत जगत की माया शक्ति जीव को इस बात के लिए बाध्य करती है कि इन्द्रिय तृप्ति की अपनी नाना प्रकार की इच्छाओं के कारण यह अपनी देह बदल दें। ये इच्छाएं कीट से लेकर मनुष्य, देवताओं आदि उत्तम देहों तक नाना योनियों में व्यक्त होती हैं। अपने पुण्य व पाप कर्मो के अनुसार जीव नाना प्रकार की योनियों व शरीर धारण करता है।

उन्होंने कहा कि जीव पूर्ण से भिन्न अंश है और पूर्ण कभी नहीं हो सकता। इन्द्रियभोग और मद के कारण ही वह तरह-तरह की योनियों मे भटकता है। अपने जीवन के अस्तित्व काल में किये गये असत्य कर्मों का स्मरण करने के लिए ही उसे देह मिलती है। ईश्वर की कृपारूपी प्रकाश से दूर रहकर जीवन की राह से भटक जाते है। उस परमात्मा की कृपारूपी प्रकाश पाने के बाद सीधा और सरल मार्ग मिलता है।

इस अवसर पर विशेष रूप से शकुंतला डोभाल, प्रशांत डोभाल, प्रत्युष डोभाल, नवनीत डोभाल, संजीव, सौरभ, महेंद्र प्रसाद नौडियाल, ऋतविक, संचित शर्मा, मानस डोभाल, कार्तिक डोभाल, लावण्या, आचार्य कालिका प्रसाद थपलियाल, भुवनेश्वरी बडोनी, आचार्य अरुण थपलियाल आदि भक्तगण उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/ साकेती/सत्यवान/रामानुज

   

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