राजस्थान में एक-दो साल में ही लोगों को उपलब्ध होगा छिलका रहित जौ

जयपुर , 29 मई (हि.स.)। देश में सबसे ज्यादा जौ उत्पादक प्रदेश राजस्थान में जौ पर नया अनुसंधान किया गया है और अगले एक-दो साल में लोगों को छिलका रहित जौ मिलने लगेगा।

श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर के कुलपति डाॅ.बलराज सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय के राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान दुर्गापुरा जयपुर में बिना छिलके वाले जौ की किस्म तैयार की जा रही है। यह बिना छिलके वाला जौ जिसे नेक्ड बार्ले, हल लैस एवं फूड बार्ले कहा गया हैं और भविष्य में यह गेहूं की जगह ले सकता है। उन्होंने बताया कि जौ का ऑन लैस चारा भी लाया जा रहा है। जिससे पशुओं को जौ का चारा खाने में उन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी।

उन्होंने बताया कि आगामी सीजन में बिना छिलके के जौ की किस्म को कुछ किसानों के यहां बहुत सीमित क्षेत्र में परीक्षण के तौर पर बोया जायेगा। उन्होंने बताया कि राजस्थान देश में सबसे ज्यादा जौ उत्पादक वाला राज्य हैं और देशभर में करीब आठ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में से राजस्थान में चार लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में जौ की पैदावार की जाती है।

डाॅ. सिंह ने जौ का महत्व बताते हुए कहा कि हरित क्रांति के समय गेंहू, धान एवं मक्का जैसे अनाज पर ज्यादा बल देने से देश में इन फसलों का चलन और रकबा बढ़ा लेकिन जौ जैसी फसल जो 1960-70 तक देश में 28 से 30 लाख हेक्टेयर में बोई जाती थी वह धीरे धीरे घटकर मात्र आठ लाख हेक्टेयर तक रह गई और आज जो विदेशों से आयात करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि गेंहू से ग्लूटन एनर्जी एवं चावल से मधुमेह रोग की समस्या को कम करने के लिए जौ का उपयोग काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

उन्होंने कहा कि जौ गेंहू के मुकाबले कम पानी एवं खारा पानी में भी हो सकता है वहीं जलवायु परिवर्तन के भी सहन करने की क्षमता होती है। उन्होंने बताया कि जौ का जीआई इंडेक्स चावल, गेंहू एवं अन्य अनाजों से बहुत कम हैं। चावल का जीआई इंडेक्स 70 से अधिक हैं तथा गेंहू का जीआई इंडेक्स 60-65 जबकि जौ का जीआई इंडेक्स 25 हैं। उन्होंने जौ को बढ़ावा देने के लिए सरकार को भी आगे आने की जरुरत बताते हुए कहा कि सरकार को इसे पॉलिसी में लेना चाहिए और इसकी बिक्री में मदद करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जौ को फूड हेबिट में लाने की जरुरत बताते हुए कहा कि गेंहू एवं अन्य मोटे अनाज को जिस तरह बढ़ावा मिला उसी तरह जौ को ज्यादा बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि यह फूड हेबिट में आ सके। उन्होंने बताया कि बिना छिलके वाला जौ एक-दो साल में बाजार में आ जायेगा।

उन्होंने बताया कि इसी तरह बैल पत्र की भी ऐसी किस्म इजाद की जा रही है जो शून्य डिग्री से चार डिग्री सैल्सिसय नीचे तापमान पहुंच जाने पर भी वह सुरक्षित रहेगी।

राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान दुर्गापुरा में बिना छिलके के जौ पर अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिक डॉ. श्याम सिंह राजपूत (जौ प्रजनक) ने बताया कि बिना छिलके वाले जौ की पांच किस्में अच्छी हैं और इसकी उपज क्षमता 75 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की होगी। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार के 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की उपज क्षमता की किस्में तैयार करने के निर्देश से यह ज्यादा ही हैं।

डॉ. राजपूत ने बताया कि बिना छिलके वाले जौ की किस्म की आगामी जौ फसल के सीजन में विभिन्न किसानों के खेतों में आधा हैक्टेयर तक बुवाई की जायेगी और उसकी पैदावार को परखा जायेगा। उन्होंने बताया कि आगामी एक-दो साल में बिना छिलके का जौ लोगों मिल जाने की संभावना है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में जौ का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है और वर्ष 2021-22 में करीब दो लाख हैक्टेयर में इसकी बुवाई की गई। इसके इसका रकबा बढ़कर 3़ 37 लाख हेक्टयर हो गया और इस बार यह बढ़कर लगभग साढ़े चार लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया।

उन्होंने बताया कि राजस्थान में अखिल भारतीय जौ अनुसंधान सुधार परियोजना का शुभारम्भ वर्ष 1966-67 में दुर्गापुरा जयपुर में हुआ। उन्होंने बताया कि इस बहुउद्देशीय परियोजना ने विभिन्न उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान दुर्गापुरा द्वारा जौ की 31 उन्नत किस्मों को विकसित किया।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप

   

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