राजस्थान में लोकसभा की नौ हॉट सीटों पर रहा रोचक मुकाबला

जयपुर, 4 जून (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी को पूर्वी राजस्थान, शेखावाटी और नहरी क्षेत्र में बड़ा झटका लगा है। अलवर, कोटा, जोधपुर, नागौर, बीकानेर, बाड़मेर, चूरु, जालौर और बांसवाड़ा में रोचक मुकाबला रहा। भाजपा लोकसभा चुनाव के लिए राजस्थान में चार केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारा था। इनमें से तीन ने जीत दर्ज की है। वहीं एक मंत्री को हार का सामना करना पड़ा।

बाड़मेर से दोबारा भाग्य आजमाने वाले चार केंद्रीय मंत्रियों में से एक कैलाश चौधरी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। वे तीसरे नंबर पर रहे। जीत के लिए वे मोदी लहर के भरोसे रहे, यही उनकी हार का मुख्य कारण रहा। मोदी कैबिनेट में रहे तीन दिग्गज अलवर से भूपेन्द्र यादव, बीकानेर से अर्जुन राम मेघवाल और जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत चुनाव जीते हैं। कोटा में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने भाजपा से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल को हराया, लेकिन इस सीट पर कांटे का मुकाबला रहा।

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गोरसिया के अनुसार बाड़मेर में केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की हार का सबसे बड़ा कारण शुरुआत में उनका अति आत्मविश्वास और पांच साल में ग्राउंड कनेक्ट खो देना रहा है। स्थानीय राजनीति में भी गुटबाजी के कारण ग्राउंड पर उनका जनाधार सिमटता गया। शुरुआत में उन्हें मोदी लहर से उम्मीद थी लेकिन राजस्थान में वो लहर असर नहीं दिखा पाई। निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी के उभार ने सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा का किया। भाटी को मनाने में विफल रहना और स्थानीय नेताओं को विश्वास में नहीं ले पाना भी केंद्रीय मंत्री के लिए सियासी रूप से बड़े नुकसान का कारण बना।

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर की हॉट सीट से जीत की हैट्रिक बनाने में कामयाब रहे। कांग्रेस से करण सिंह उचियारड़ा ने चुनाव अच्छा लड़ा लेकिन वे इसे जीत में नहीं बदल पाए। वे ओवर कॉन्फिडेंस में नहीं रहे। नाराज चल रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाकर साथ लिया। राजे समर्थक विधायक बाबू सिंह राठौड़ से मतभेद के बाद सुलह की, इसका भी फायदा मिला।

जालोर में पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे वैभव गहलोत लगातार दूसरा लोकसभा चुनाव हार गए। भाजपा के पूर्व प्रधान लुंबाराम चौधरी ने वैभव गहलोत को हराया है। वैभव पिछली बार जोधपुर से हारे थे। हालांकि वैभव गहलोत ने चुनावी माहौल बनाने में कसर नहीं रखी। साधारण और स्थानीय लुंबाराम चौधरी के आगे पूर्व सीएम के बेटे की हाई प्रोफाइल छवि वाले वैभव नहीं टिक पाए। वैभव को कांग्रेस के एक गुट से पूरे क्षेत्र में भीतरघात का सामना करना पड़ा, कांग्रेस के आपसी झगड़े भी वैभव गहलोत की हार की बड़ी वजह बने। वैभव गहलोत के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी थी। चूरू सीट पहले दिन से ही हॉट सीट थी। राहुल कस्वां का भाजपा ने जिस दिन टिकट काटा, उसी दिन से यहां सियासी फिजां बदल गई थी। राहुल कस्वां ने राजेंद्र राठौड़ पर टिकट कटवाने का आरोप लगाकर चुनाव को अलग मोड़ दे दिया। विधानसभा चुनाव में जिस तरह चूरू में जातीय आधार पर चुनाव हुआ, वो ही फैक्टर लोकसभा में हावी रहा। भाजपा शेखावाटी इलाके को साध नहीं पाई।

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला कड़े मुकाबले के बावजूद भाजपा से कांग्रेस में गए प्रहलाद गुंजल को मात देने में कामयाब रहे। बिरला की जीत के पीछे शहरी वोटर्स पर उनकी पकड़ भी बड़ा कारण रही। बीजेपी से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल को कांग्रेस के एक गुट ने स्वीकार नहीं किया, भीतरघात भी गुंजल की हार का बड़ा कारण रहा। शहरी इलाके के वोटर ने बिरला का साथ नहीं छोड़ा। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने पहली बार अलवर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतने में कामयाब रहे। चुनाव लड़वाने और चुनावी रणनीति बनाने में माहिर माने जाने वाले यादव ने इसका इस्तेमाल खुद के चुनाव में किया। यादव ने कांग्रेस के नाराज नेताओं को चुनाव से पहले पार्टी में शामिल करके स्थानीय समीकरणों को पक्ष में किया। कांग्रेस विधायक ललित यादव ने चुनाव भले अच्छा लड़ा लेकिन आखिर में जातीय समीकरण सेट नहीं कर पाए। बीकानेर में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल चौथी बार जीतने में कामयाब रहे। कांग्रेस उम्मीदवार गोविंदराम मेघवाल अर्जुन की रणनीति के आगे बढ़त नहीं बना पाए। शहरी वोटर्स पर अर्जुन मेघवाल की पकड़ बरकरार रही। नागौर में इस बार ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल पार्टी-गठबंधन बदलकर चुनाव लड़े, लेकिन नतीजा पिछली बार वाला ही रहा, ज्योति मिर्धा पार्टी बदलकर भी हार गईं, बेनीवाल गठबंधन बदलकर जीत गए। ज्योति मिर्धा स्थानीय समीकरणों को नहीं साध पाईं। ग्राउंड कनेक्ट का अभाव और भाजपा के कोर वोटर्स का समर्थन नहीं जुटा पाना हार का बड़ा फैक्टर रहा।

भाजपा ने लोकसभा चुनावों से पहले महेंद्रजीत मालवीय को कांग्रेस से भाजपा में शामिल कर टिकट दिया, इसके बावजूद बीएपी के आदिवासी फैक्टर से हार गए। महेंद्रजीत मालवीय ने लोकसभा लड़ने के लिए पार्टी और विधायक की सीट छोड़ी, लेकिन राजुकमार रोत और बीएपी के उभार के आगे वो टिक नहीं पाए। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस के एक बड़े खेमे का भी मालवीय को समर्थन था। गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के उम्मीदवार पर्चा उठाने से पहले गायब हो गया था, फिर भी आदिवासी वोटर्स पर असर नहीं हुआ।

हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/ईश्वर

   

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