बांधों की तैयारी को परखने के लिए होगी मॉक ड्रिल

-सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास ने दिए निर्देश

देहरादून, 25 जून (हि.स.)। बांधों की तैयारी और सुरक्षा व्यवस्था को परखने के लिए जुलाई के पहले पखवाड़े में मॉक ड्रिल का आयोजन किया जाएगा। मॉक ड्रिल में यह देखा जाएगा कि सेंसर और सायरन सही काम कर रहे हैं या नहीं।

मंगलवार को सचिवालय में सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास डॉ.रंजीत कुमार सिन्हा की अध्यक्षता में आगामी मानसून को लेकर बांध परियोजनाओं के साथ बैठक आयोजित हुई। इस दौरान प्रदेश की बांध परियोजनाओं के प्रतिनिधियों ने मानसून के दृष्टिगत अपनी-अपनी तैयारियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि जुलाई के पहले पखवाड़े में बांधों की तैयारी और सुरक्षा व्यवस्था को परखने के लिए मॉक ड्रिल का आयोजन किया जाएगा। एसओपी बांध परियोजनाओं की ओर से बनाई गई हैं, आपातकालीन स्थिति में वह एसओपी धरातल में कितनी उपयोगी साबित होगी।

उन्होंने कहा कि बांधों और बैराजों की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होनी बहुत जरूरी है। सभी बांध ऑटोमेटिक सेंसर लगाएं ताकि एक निश्चित सीमा से बांध या बैराज का जल स्तर बढ़े तो सायरन खुद-ब-खुद बज जाए। सभी बांध परियोजनाओं के प्रतिनिधियों से कहा कि उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ समन्वय के लिए नोडल अधिकारी की तैनाती करें। उन्होंने सभी बांधों को अपनी-अपनी एसओपी तथा ऑपरेशनल मैनुअल यूएसडीएमए के साथ साझा करने को कहा। साथ ही साइरन का शैडो कंट्रोल तथा सेंसर्स का एपीआई राज्य आपदा परिचालन केंद्र को उपलब्ध कराने को कहा।

बैठक में यूएसडीएमए के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (प्रशासन)आनंद स्वरूप, अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (क्रियान्वयन) राजकुमार नेगी, अपर सचिव महावीर सिंह चौहान, संयुक्त सचिव विक्रम सिंह यादव, उप सचिव ज्योतिर्मय त्रिपाठी, संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी मो.ओबैदुल्लाह अंसारी, यूएसडीएमए के विशेषज्ञ देवीदत्त डालाकोटी, डॉ.पूजा राणा, डॉ.वेदिका पंत, रोहित कुमार, तंद्रीला सरकार, मनीष भगत, हेमंत बिष्ट के साथ ही विभिन्न बांध परियोजनाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए।

सचिव आपदा ने धौलीगंगा बांध परियोजना के प्रतिनिधियों से धारचूला में 360 डिग्री का पांच किलोमीटर तक की रेंज वाला साइरन लगाने के निर्देश दिए। धारचूला मुख्य केंद्र है और यहां रहने वाले लोगों की सुरक्षा बहुत जरूरी है। बैठक में टीएचडीसी के एजीएम एके सिंह ने बताया कि गाद जमा होने के कारण टिहरी बांध की जल भंडारण क्षमता 115 मिलियन घन मीटर तक घट गई है। पहले यह 2615 मिलियन घन मीटर थी और वर्तमान में यह 2500 मिलियन घन मीटर पर आ गई है।

सचिव आपदा प्रबंधन ने उत्तरप्रदेश इरिगेशन विभाग के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई। उत्तराखंड में यूपी इरीगेशन के नियंत्रणाधीन बांध और बैराजों में अर्ली वार्निंग सिस्टम नहीं लगाने पर सचिव आपदा प्रबंधन ने कारण बताओ नोटिस जारी करने के निर्देश दिए। सचिव आपदा प्रबंधन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी ग्लेशियरों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है, इसलिए इनका अध्ययन भी जरूरी है। ग्लेशियर झीलों के अध्ययन के लिए जल्द एक दल जा रहा है। ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए भी एक दल जल्द भेजा जाएगा।

यूएसडीएमए देगा सेटेलाइट फोन-

यूजेवीएनएल के अधिशासी निदेशक पंकज कुलश्रेष्ठ ने बताया कि उन्होंने सेटेलाइट फोन भी खरीद लिए हैं। आपदा के समय यदि संचार व्यवस्था ठप हो जाए तो इनसे संवाद करने में बड़ी मदद मिलेगी। सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि यदि और सेटेलाइट फोन की जरूरत हो तो यूएसडीएमए से ले सकते हैं। उन्होंने बांधों के पास उपलब्ध सेटेलाइट फोन के नंबर भी यूएसडीएमए के कंट्रोल रूम से साझा करने को कहा। नदी के किनारे डेंजर प्वाइंट चिह्नित किए जाने जरूरी हैं ताकि अचानक जलस्तर बढ़ने पर नदी में जाने वाले लोगों की सुरक्षा को खतरा न हो और लोग वहां जाने से बचें

विष्णुप्रयाग बांध परियोजना की एसओपी उपलब्ध कराएं-

डॉ. सिन्हा ने जेपी ग्रुप की विष्णुप्रयाग बांध परियोजना के प्रतिनिधियों को सख्त हिदायत दी कि वे जल्द से जल्द अपनी एसओपी, इमरजेंसी एक्शन प्लान और शैडो कंट्रोल यूएसडीएमए के राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के साथ साझा करने को कहा। यूएसडीएमए की मौसम विशेषज्ञ डॉ. पूजा राणा ने बताया कि शैडो कंट्रोल में बांध के साथ-साथ यूएसडीएमए के कंट्रोल रूम से भी संचालन किया जा सकता है।

हिन्दुस्थान समाचार/राजेश/पवन

   

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