रूढ़ियों के खिलाफ संघर्ष करने वाली सावित्रीबाई फुले को किया गया याद

-रीवा घाट पर दी गई श्रद्धांजलि, योगदान का किया गया जिक्र

वाराणसी, 03 जनवरी (हि.स.)। रूढ़ियों के खिलाफ संघर्ष और बालिका शिक्षा के लिए त्याग करने वाली सावित्रीबाई फुले की जयंती पर बुधवार को उन्हें याद किया गया। गंगा किनारे रीवाघाट पर जुटे सामाजिक संस्था दखल के सदस्यों के साथ अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सावित्री बाई फुले के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित किया।

इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि स्त्रियों की शिक्षा जिस दौर में निषिद्ध थी, तब एक महिला ने लड़कियों को पढ़ाने का जोखिम लिया। उन्होंने देश का पहला बालिका विद्यालय 01 जनवरी 1848 को खोला था। समाज व्यवस्था और परंपरा में शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं के लिए तय स्थान को आधुनिक भारत में पहली बार जिस महिला ने संगठित रूप से चुनौती दी, उनका नाम सावित्री बाई फुले है। वे आजीवन शूद्रों-अतिशूद्रों की मुक्ति और महिलाओं की मुक्ति के लिए संघर्ष करती रहीं। उस समय शूद्र जाति में पैदा किसी लड़की के लिए शिक्षा पाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। तब वे घर के काम करती थीं और पिता के साथ खेती के काम में सहयोग करती थीं। 09 वर्ष की उम्र में उनकी शादी 13 वर्षीय जोतिराव फुले के साथ हुई। जोतिराव फुले सावित्री बाई फुले के जीवनसाथी होने के साथ ही उनके शिक्षक भी बने। जोतिराव फुले और सगुणा बाई की देख-रेख में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद औपचारिक शिक्षा अहमदनगर में ग्रहण की। उसके बाद उन्होंने पुणे के अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण लिया। फुले दंपत्ति ने 01 जनवरी 1848 को लड़कियों के लिए पहला स्कूल पुणे में खोला। 15 मई 1848 को पुणे के भीड़वाडा में जोतिराव फुले ने दूसरा स्कूल खोला, तो वहां सावित्री बाई फुले मुख्य अध्यापिका बनीं। इन स्कूलों के दरवाजे सभी जातियों के लिए खुले थे।

वक्ताओं ने कहा कि शिक्षा की जो चिंगारी उन्होंने लगाई थी समय बदलने पर वो रोशनी बनी। कार्यक्रम में इंदु पाण्डेय, जागृति राही, नीति, मैत्री, रणधीर, सना, शिवांगी आदि ने भागीदारी की।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश

   

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