परमात्मा के लिए संसार में विविधताएँ हैं, कुछ लोग आत्मा को ही सबसे बड़ी ताकत मानते हैं: सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज

साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज रखबंधु में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि परमात्मा के लिए संसार में विविधताएँ हैं। कुछ लोग आत्मा को ही सबसे बड़ी ताकत मानते हैं। बुद्ध धर्म में आत्मा को ही सबकुछ माना जाता है। कुछ कबीर पंथी भी यह मानते हैं। कबीर साहिब ने आत्मा को सबकुछ नहीं बोला है। उन्होंने तो आत्मा की क्षमता के बारे में कहा कि यह आत्मा बहुत ताकतवर है। इसी को कुछ नासमझ लोगों ने कह दिया कि आत्मा ही सबकुछ है। एक कबीर पंथी महात्मा गुरुदेव के पास आए। बात हुई तो गुरुदेव ने कहा कि आत्मा ही सबकुछ है तो क्यों बंधन में है। उसने कहा कि कर्म के कारण। गुरुदेव ने कहा कि फिर तो कर्म ही बड़ा हो गया न। हमारे देश में चार वेदों की चार मान्यताएँ हैं। अलग अलग मत है। कोई सगुण, कोई निर्गुण कहता है, कोई कर्म को प्रधान कहता है, कोई आत्मा को ही परमात्मा कहता है। ऋग्वेद ने सबसे पहले संसार का निराकार का भेद दिया है। यही बात मुसलमान भी बोल रहे हैं। यही ईसाई लोग भी बोल रहे हैं। जो जिसको पकड़ा है, बोलता है कि बस यही है। ज्यादा बोलो तो बोलते हैं कि एक ही बात है। यह मुहावरा तो पिंडा छुटाने के लिए है। तर्कयुक्त नहीं है। 

हरिश्चंद्र के पिता त्रिशंकु वशिष्ठ के श्राप के कारण से राक्षस योनि को प्राप्त हुए। पर विश्वामित्र ने अपनी योग शक्ति से पुनः मनुष्य बनाया था और सशरीर स्वर्ग में भेजा था। वहाँ से उसको धक्के मारकर वापिस भेज दिया गया। जब वो गिरता आ रहा था तो विश्वामित्र ने उसे अधर में रोक दिया, बोला कि रुको, मैं दूसरा स्वर्ग बना रहा हूँ। जब वो दूसरा स्वर्ग बनाने लगे तो इंद्र ने आकर प्रार्थना की, उसको ईर्ष्या आई, बोला कि दूसरा स्वर्ग नहीं बनाओ। दूसरा स्वर्ग बन जाएगा तो समस्त देवता होंगे, त्रिदेव भी बना देगा। 

जब हम कथाओं को पढ़ते हैं तो लगता है कि शक्ति का केंद्र कहीं ओर है। जब हम सीरियल देखते हैं तो भी लगता है कि कुछ मामला आगे है। विश्वामित्र ने एक शर्त रखी कि इसको तुम वहाँ रखो तो मैं नहीं बनाता दूसरा स्वर्ग। अब इंद्र को भय हुआ कि दूसरा स्वर्ग बना तो मेरे स्वर्ग की महिमा घट जायेगी। इसलिए जब त्रिशंकु को वहाँ स्थान मिला तो विश्वामित्र ने दूसरे स्वर्ग की रचना बंद कर दी। इसका मतलब है विश्वामित्र सृष्टिकर्ता के पद पर स्थित हो चुके थे। कर्म तो है। यही बात गोस्वामी जी भी रामायण में बोल रहे हैं कि कर्म प्रधान ही संसार की रचना हुई है। जो जैसा कर्म करता है, उसी के अनुसार उसे फल मिलता है। लेकिन यह जीव पूरे ब्रह्माण्ड पर भी हुकुमत कर सकता है। 

राजा जालंधर में इतनी शक्तियाँ थी कि त्रिदेव भी डरते थे। कौन दिया उनको इतनी शक्तियाँ। क्या मामला है। रावण के पास कितनी शक्तियाँ थीं। लेकिन वासना से नहीं बच सके। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी रावण को राक्षस कुल का माना जाता है। इसका मतलब है कि कोई अन्य ताकत चाहिए इन विकारों पर विजय पाने के लिए। वो कहीं ओर से मिलती है।

   

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