बीएचयू भारत कला भवन के केन्द्रीय कक्ष में ''रामायण'' पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन

- प्रदर्शनी की यात्रा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘‘रामचरित मानस’’ की पाण्डुलिपि से प्रारम्भ

वाराणसी,18 जनवरी (हि.स.)। अयोध्या में जन्मस्थान पर श्री राम लला के नव निर्मित भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के पूर्व गुरूवार को बीएचयू परिसर स्थित भारत कला भवन के केन्द्रीय कक्ष में ‘‘रामायण’’ पर आधारित अस्थायी प्रदर्शनी में छात्रों की भीड़ उमड़ पड़ी। प्रदर्शनी का उद्घाटन उपाध्यक्ष, वाराणसी विकास प्राधिकरण, पुलकित गर्ग ने किया।

प्रदर्शनी में संग्रहालय के संग्रहीत कलाकृतियों में से रामायण से सम्बन्धित विशिष्ट कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। राम भारतीय युवाओं के आदर्श हें, इस प्रदर्शनी के माध्यम से आम जन-मानस को राम के आदर्शों को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है। इस प्रदर्शनी की परिकल्पना उपनिदेशक, भारत कला भवन, डॉ0 जसमिन्दर कौर ने की है। इस प्रदर्शनी की यात्रा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘‘रामचरित मानस’’ की पाण्डुलिपि से प्रारम्भ होती है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने सन् 1486 ई0 में विश्व प्रसिद्ध शहर बनारस के तुलसीघाट पर लिखा था। ‘‘रामायण’’ भारतीय साहित्य परम्परा में एक महाकाव्य है, इस महाकाव्य के कई काण्ड हैं जैसे बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड आदि प्रमुख हैं। यह प्रदर्शनी गुप्तकाल (5वीं शताब्दी ई0) से लेकर आधुनिक काल तक के रामायण से जुड़ी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है।

वाराणसी से प्राप्त सेतु निर्माण को दर्शाती प्रस्तर मूर्ति, सारस पक्षी की हत्या को दर्शाती लघु चित्र, जिसने ऋषि वाल्मीकी की कल्पना को रामायण जैसी महाकाव्य के रूप में लिखने को प्रेरित किया। इसके साथ ही साथ मुगल शासक अकबर द्वारा राम-सीया पर जारी रजत सिक्के की प्रतिकृति भी प्रदर्शित की गयी है, जिसे अकबर द्वारा शासनकाल के 50वें वर्ष में जारी किया गया था। इसके पश्चात प्रदर्शनी राम के जीवन के विविध पक्षों से आम जनमानस को अवगत कराती है।

प्रदर्शनी के द्वारा उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत के रामायण से सम्बन्धित कलाकृतियों के द्वारा राम के विशिष्ट सर्न्दभों को उदघाटित करने का प्रयास किया गया है। इनमें विशिष्ट रूप से दक्षिण भारत के तंजौर शैली में निर्मित राम-रावण के मध्य युद्ध वाली कलाकृति प्रमुख हैं। उत्तर भारत की राम से सम्बन्धित विशिष्ट कलाकृतियों में पट्नीमल रामायण प्रमुख है। यह कलाकृति जयपुर-अवध शैली (मिश्रित) में बनी हुई है पट्नीमल बनारस के समृद्ध व्यापारी थे जिन्हें बनारस दरबार द्वारा संरक्षण दिया गया था। इस प्रदर्शनी के अन्तर्गत ‘‘राम के वैदिक सन्दर्भ’’ एक विमर्श विषयक आनलाइन व्याख्यान भी आयोजित हुआ। जिसमें पूर्व विभागाध्यक्ष, कला इतिहास एवं पर्यटन प्रबन्धशास्त्र विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रो0 दीनबन्धु पाण्डेय ने व्याख्यान दिया।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/मोहित

   

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