सरकार के सहयोग से माच कला निरंतर समृद्ध होती रहेः पदमश्री ओम प्रकाश शर्मा

भोपाल, 4 फरवरी (हि.स.)। भारत का हदय अंचल मालवा भारतीय कला संस्कृति से समृद्ध है। यहां की माच कला पिछले दो सौ सालों से लोक मनोरंजन और मूल्यों को प्रसारित करने का माध्यम है। हाल ही में माच कला के अनन्य साधक ओम प्रकाश शर्मा को प्रतिष्ठित पदमश्री से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। यह प्रतिष्ठित सम्मान मिलने पर ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को बहुत धन्यवाद और हृदय से आभार। वे कलाकारों के मान-सम्मान का ध्यान रखते हैं। उन्होंने अपेक्षा की है कि सरकार के सहयोग से माच कला निरन्तर समृद्ध होती रहे।

गौरतलब है कि ओमप्रकाश शर्मा दस-बारह वर्ष की आयु से ही माच कला में पारंगत होते आ रहे हैं। उन्होंने इस कला को समृद्ध बनाने और इसका संरक्षण करने में सुदीर्घ साधना की है। कला के प्रति उनका समर्पण नमन योग्य है। वे अपने कलाकार बनने में अपने गुरू पिता स्वर्गीय शालीग्राम और दादा स्वर्गीय कालूराम का योगदान मानते हैं। लोकनाटय कला माच की साधना करते हुए ओमप्रकाश शर्मा स्वयं भी वादय यंत्रों को बजाने में पारंगत हो गए। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश -

माच कला की प्रारंभिक शिक्षा -

उन्होंने कहा कि 10-12 वर्ष की आयु से माच कला में प्रदर्शन कर रहा हूं। मेरे गुरू पिता स्व. शालीग्राम एवं मेरे दादा स्व. कालूरामजी थे।

कला की विशेषताएं -

शर्मा ने कहा कि इस कला में मेरे पिताजी और दादा जी ने स्वर ज्ञान, शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, लोक संगीत एवं विशेष रूप से माच की विधा को सिखाया। इसमें 10-12 महिला एवं पुरूष कलाकार काम करते हैं। इसमें मुख्य रूप ढोलक, हार्मोनियम और सारंगी का उपयोग होता है। पहले जमाने में सारंगी, ढोलक तथा शहनाई का बिगड़ा रूप टोटा से बजाया करते थे।

युवा पीढ़ी का रूझान -

उन्होंने कहा कि प्रमिता चारेगांवकर, विनीता माहोरकर, पूजा चौहान, गजेन्द्र सिंह, सूर्यप्रकाश वाजपेयी, शनि नागर जैसे कलाकारों से माच कला को अपनाया है। मेरे बेटे भूपेन्द्र एवं विजेन्द्र शर्मा भी कला साधना कर रहे हैं।

सरकार से अपेक्षा -

उन्होंने कहा कि सरकार की मदद से ज्यादा से ज्यादा लोगों को माच कला में पारंगत किया जा सकता है।

अब तक कितने प्रदर्शन दे चुके हैं

शर्मा ने बताया कि अभी तक 200 से अधिक माच कला का प्रदर्शन दे चुके हैं। भारत रंग उत्सव, चैन्नई, लखनऊ, मुम्बई में माच कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।

माच की विषय वस्तु -

उन्होंने बताया कि माच की विषय वस्तु वे स्वयं लिखते हैं। परंपरागत विषय होते हैं। रामायण, राधा-कृष्ण प्रसंगों और ऐतिहासिक विषयों पर लिखी जाती है।

कोई विशेष सम्मान

शर्मा ने बताया कि नये हार्मोनियम बनाने की कला के साथ ही साथ हार्मोनियम, गिटार, मेंडोलीन, वायलीन, तबला, ढोलक बजाना सीखा। वर्ष 2001 में उन्हें शिखर सम्मान मिला, 2007 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने संगीत नाटक अकादमी अवार्ड दिया। फिर 2014 में राष्ट्रीय तुलसी सम्मान और अब पद्मश्री सम्मान मिलने जा रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/मयंक

   

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