संस्कृत से प्राणवायु पाती हैं भारतीय भाषाएं

जयपुर, 21 फ़रवरी (हि.स.)। भारतीय भाषाओं के सुरक्षित बने रहने के लिए संस्कृत भाषा के अस्तित्व को बचाए रखना बेहद जरूरी है। संस्कृत के शब्द और साहित्य ही जब भारतीय भाषा में उतरते हैं, तो लोकभाषाएं समृद्ध होती हैं। यह बात बुधवार को जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हुई संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में दर्शन विभागाध्यक्ष शास्त्री कोसलेंद्रदास ने कही।

उन्होंने कहा कि लोगों को अपने बच्चों से स्थानीय बोलियों में बात करनी चाहिए, जिससे मातृभाषाएं सुरक्षित रह सकें। सारस्वत अतिथि डॉ. राजधर मिश्र ने विभिन्न भागों में बोली जा रही भाषाओं के बीच सेतु बनाने पर जोर दिया। उन्होंने भाषाओं के बीच साहित्यिक आदान-प्रदान की संस्कृति बढ़ाने की जरूरत बताई। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा कि समाज के लिए सांस्कृतिक व भाषाई विविधता जरूरी है। शांति की स्थापना के लिए यह जरूरी है कि संस्कृतियों और भाषाओं में अंतर को संरक्षित करें, जो दूसरों के प्रति सहिष्णुता और सम्मान को बढ़ावा देता है। संगोष्ठी समन्वयक डॉ. विनोद शर्मा ने भाषाओं को सुरक्षित रखने के तकनीकी उपायों के बारे में विस्तार से बताया। संयोजन डॉ. शशि कुमार शर्मा और मंगलाचार अथर्ववेदीय विद्वान डॉ. नारायण होसमने ने किया। इस अवसर पर डॉ. माताप्रसाद शर्मा, डॉ. स्नेहलता शर्मा और डॉ. देवेंद्र शर्मा सहित अनेक शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/संदीप

   

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