संशोधित...रामपुर तिराहा कांड में दो सिपाहियों को सजा पर राज्य आंदोलनकारियों ने जताई खुशी

नैनीताल, 19 मार्च (हि.स.)। रामपुर तिराहा कांड के कुछ दोषियों को उम्र कैद की सजा मिलने पर राज्य आंदोलनकारियों ने खुशी जताई है। अलबत्ता इस मामले में कुछ सवाह भी उठाये हैं।

नगर के वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी पूरन मेहरा ने कहा कि दो पुलिस कर्मियों को इस मामले में सजा मिलना मील का पत्थर साबित होगा। साथ ही इस बात पर अफसोस भी जताया कि अलग उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़ने वाले शहीदों के हत्यारों या हत्या की साजिश करने वालों पर हत्या करने के आरोप में कोई मामला ही नहीं चल रहा हैं। ऐसे में असल दोषियों को सजा मिलना तो नामुमकिन है।

मेहरा ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता में कहा कि अक्टूबर 1994 को अलग राज्य की मांग के लिए दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों को रामपुर तिराहा में गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया गया था। ऐसे एक मामले में सीबीआई बनाम मिलाप सिंह और अन्य के मामलों में पीएसी के दो तत्कालीन आरक्षियों पर महिलाओं से दुराचार मारपीट नकदी और गहने आदि लूटने से सम्बंधित, भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी 323, 354, 376, 392 व 509 के तहत हैं।

उन्होंने दावा किया कि जो चार मामले मुजफ्फरनगर की अदालत में चल रहे हैं, उनमें से कोई भी मामला शहीदों की हत्या से संबंधित नहीं है। बताया कि दूसरा मामला सीबीआई बनाम राधामोहन द्विवेदी में लगभग 16 पीड़ित महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों अपराधों से संबंधित शारीरिक शोषण कपड़े फाड़े जाने लूटपाट से संबंधित है। इस मामले में भी धारायें पूर्व मुकदमे की तरह की ही हैं। यह मुकदमा काफी समय तक बन्द रहा। तीसरा मुकदमा सीबीआई बनाम एसपी मिश्र का भारतीय दंड संहिता की धारा 201 व 120के तहत है, जिसमें पुलिस कर्मियों पर आरोप है। उन्होंने षड्यंत्र के तहत आन्दोलनकारी शहीदों के शवों को गायब कर दिया था या गंगनहर में फेंक दिया था। जबकि चौथा मामला सीबीआई बनाम बृज किशोर व अन्य भादंसं की धारा 211, 182, 218 व 120बी के तहत आंदोलनकारियों पर हथियारों पेट्रोल आदि की झूठी बरामदगी दिखाने का है।

इस प्रकार कोई भी मामला हत्या के साथ गैर इरादन हत्या से संबंधित भी नहीं है। उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 1996 के आदेश को भी याद दिलाया, जिसमें सरकार को शहीद उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारियों के परिवारों को दस-दस लाख रुपये देने के आदेश हुए थे। कहा कि जब आंदोलनकारी शहीद हुए और उनके परिजनों को 10-10 लाख रुपये देने के आदेश हुए तो उनकी हत्या करने वालों पर कोई मुकदमा क्यों दर्ज नहीं है। ऐसे में शहीदों के हत्यारों को हत्या करने की सजा मिलने की कोई संभावना नहीं है। कहा कि हत्या के जो मामले थे, उनमें समय पर आरोप पत्र दाखिल नहीं हो पाये या आरोप तय ही नहीं किये जा सके और आरोप खारिज हो गये। कहा कि शहीदों के हत्यारों को सजा दिलाने के लिये सभी आंदोलनकारी संगठनों को एक मंच पर आकर लड़ाई लड़नी होगी। इस मौके पर राज्य आंदोलनकारी मुकेश जोशी व शाकिर अली भी उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ.नवीन जोशी/रामानुज

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