आधुनिकता की चकाचौंध में बदरंग होता जा रहा होली का रंग

हमीरपुर, 20 मार्च (हि.स.)। आधुनिकता की इस चकाचौंध में जहां तमाम सामाजिक बदलाव हुआ है, वहीं त्योहारों के मायने भी बदले हैं। पूर्व में रंगों के पर्व में रंगों से सराबोर करने का रिवाज जगह-जगह था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। रंगों से सराबोर करने की जगह लोग अबीर से चेहरे को सुर्ख कर देते हैं अथवा सूखा रंग हथेली में जरा से पानी में घोलकर चेहरे को पोत देते हैं। अब इसी तरह की होली के रंग जगह जगह दिखाई देते हैं। इससे बुजुर्ग काफी आहत है क्योंकि इस परंपरा में प्रेम उत्साह उमंग कम फूहड़पन कुछ ज्यादा है। यह सामाजिक दृष्टिकोण से शोभायमान नहीं है।

रंगों के पर्व होली की बात चलते ही विदोखर के बुजुर्ग फाग गायक अमर सिंह पुरानी यादों में खो जाते हैं। उन्होंने कुछ याद करते हुए बताया कि तब में और अब में बहुत अंतर है। तब लोगों के अंदर उत्साह उमंग प्रेम सौहार्द दिखता था। लोग एक दूसरे के आने का बेसब्री से इंतजार करते थे और सामने आते ही शिष्टाचार के साथ गहरे रंगों से एक दूसरे को सराबोर करके गले से लगा लेते थे। अब ऐसा नहीं है। अब रंगों से सराबोर करने का सिलसिला थम सा गया है।

लोग अबीर लगाकर पर्व की रस्म अदायगी कर लेते हैं। कस्बा निवासी राजेंद्र निगम दद्दा कहते हैं कि प्रेम उत्साह उमंग के इस पर्व को युवा वर्ग ने बुरी तरह से बर्बाद कर दिया है। होली के पर्व को युवाओं ने हुडदंग का रूप दे दिया है जबकि ऐसा नहीं है। यह पर्व हुडदंग मचाने का नहीं बल्कि एक दूसरे के प्रति प्रेम उत्साह जताने का है। कभी होली पर्व पर रंगों की भरमार होती थी। यह गुजरे जमाने जैसा हो गया है। रंगों की जगह लोग तरह-तरह के अन्य केमिकल रंगों को लाकर होली के रंग को बदरंग कर दिया है। जब तक रंगों के इस तरह के पर्व से इस तरह के रंगों को बाहर नहीं किया जाएगा तब तक रंगों के इस पर्व में खुशी प्रेम उत्साह सौहार्द आपसी भाईचारे के रंग नहीं भरे जा सकते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/पंकज//राजेश

   

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