चुनावी लाभ के लिए मुख्तार का हमदर्द बन रहा विपक्ष

प्रयागराज, 29 मार्च (हि.स.)। आतंक का पर्याय रहे मुख्तार अंसारी की मौत के बाद आज सारे समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), कांग्रेसी एक सुर में जेल में जहर देकर हत्या करने की बात कर रहे हैं। जिससे योगी के विरुद्ध माहौल खड़ा कर चुनावी लाभ प्राप्त कर सकें। मगर इससे ज्यादा कहीं उन दबे कुचले, आहत लोगों को खुशी है, जिन्होंने उस आतंक के अध्याय को ना केवल देखा है बल्कि झेला भी है।

मुख्तार 2005 से भले ही जेल में बंद रहा, लेकिन उसके आदेश का पालन अंदर रहकर भी चलता था। आज जो भी अपराधी मर रहे हैं या मारे जा रहे हैं, जनता बहुत खुश है और पुनः योगी शासन को स्थापित करना चाहती है। क्योंकि अभी जो बचे-खुचे अपराधी हैं उनका भी नम्बर आ जाये और लोगों को अराजकता से निजात मिल जाएगी। बस अपराध के विरोध करने का हौसला होना जरूरी है।

मुख्तार के जेल में रहने के बावजूद उसके इशारे पर कृष्णानंद राय के शरीर में 400 से ज्यादा गोलियां उतारने के बाद मुन्ना बजरंगी ने कृष्णानंद राय की चोटी काटकर पीसीओ से मुख्तार अंसारी को फोन किया था। यह हत्या एक संदेश था कि मुख्तार के खिलाफ जो खड़ा होगा उसका हश्र क्या होगा ? हत्या तो एक या दो गोली से भी हो सकती थी मगर 400 के पार गोली उतारना एक दुस्साहस था। जिसे मुलायम सिंह यादव की सरपरस्ती में मुख्तार के कहने पर मुन्ना बजरंगी और अतीकुर्रहमान ने अंजाम दिया था, वो भी एके 47 से।

मुख्तार का मकसद अपने भाई अफजाल अंसारी की पराजय का प्रतिशोध एक संदेश के रूप में लेने के पीछे वजह यह भी थी कि भविष्य में अब कोई भी राजनीति प्रतिद्वंदी अंसारी परिवार के विरूद्ध सोचने से पूर्व सैकड़ों बार सोचे। फिर यह संदेश चाहे एसपी उदय शंकर को देना हो या एसपी शैलेंद्र सिंह को देना हो। क्योंकि यही वो दोनों अधिकारी थे जिन्होंने मुख्तार के गिरेबान पर हाथ डाला था। मगर मुलायम सिंह ने उल्टा इन्ही दोनों को प्रताड़ित किया था।

इसी प्रकार योगी आदित्यनाथ की हत्या के कई प्रयास मुख्तार अंसारी ने मुलायम के साथ मिलकर किए। परंतु बाबा गोरखनाथजी के आशीर्वाद से उनका बाल बांका न हुआ। मुलायम एवं मुख्तार का मंसूबा सफल नहीं हो सका और आज ये सभी माफिया मिट्टी में मिल चुके हैं। और जो बचे हैं उन्हें अतीक और मुख्तार के अंत से सबक लेने की जरूरत है। आतंक के अजगर तो मिट्टी में मिल चुके हैं, बचे सपोले तो तीसरे टर्म के बाद फन उनके भी कुचले जायेंगे।

इसी प्रकार 25 जनवरी 2005 दिन मंगलवार को दोपहर करीब तीन बजे शहर पश्चिमी के बसपा विधायक राजू पाल एसआरएन अस्पताल स्थित पोस्टमार्टम हाउस से दो गाड़ियों के काफिले में साथियों संग धूमनगंज के नीवां में घर लौट रहे थे, तभी सुलेमसराय में जीटी रोड पर उनकी गाड़ी को घेरकर गोलियों की बौछार कर दी गई थी। उस समय भी समाजवादी पार्टी की सत्ता थी और राजू पाल की हत्या से संगम नगरी प्रयागराज के साथ पूरा प्रदेश दहल उठा था। उस समय सपा के शासन में गुंडई जिसने देखी, वो ईश्वर से कामना करता था कि भगवान अब यह सरकार न आये। आज अखिलेश यादव, मायावती, कांग्रेस के साथ अन्य विपक्षी दलों के नेता योगी सरकार पर ही आरोप मढ़ रहे हैं। वो अपनी पार्टी के कार्यों पर गौर करें तो शायद उनको सद्बुद्धि आये।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त मिश्र/मोहित

   

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