प्रथम चरण : भाजपा की चुनावी रणनीति ने सपा की बढ़ा दी मुश्किलें

लखनऊ, 01 अप्रैल (हि.स.) । लोक सभा चुनाव के प्रथम चरण में उप्र की जिन आठ सीटों पर चुनाव होने हैं। भाजपा अपनी 2014 की स्थिति पाने के लिए बेताब है तो वहीं सपा और बसपा अपनी-अपनी सीटें बचाने के लिए जुझ रही हैं। इस बार भाजपा की चुनावी रणनीति ने सपा को रामपुर, गौतमबुद्धनगर और मुरादाबाद से उम्मीदवार को बदलने के लिए विवश किया है। अब इस बदलाव से सपा को फायदा होगा या नुकसान यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इससे भाजपा नेताओं को सपा में भीतरघात का अंदेशा है।

प्रथम चरण में उप्र की सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, पीलीभीत में चुनाव होने हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन थे। इन सीटों में तीन पर बसपा तथा दो पर सपा की साइकिल दौड़ी थी। वहीं भाजपा के खाते में तीन सीटें ही थीं। जबकि 2014 में सभी सीटें भाजपा के नाम थीं।

इन आठ सीटों पर बात करें तो भाजपा को कुल 42,30,380 वोट मिले थे। वहीं सपा, बसपा और रालोद के संयुक्त उम्मीदवारों को इन आठ सीटों पर 43,43,132 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस इनमें से पांच सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी। दो सीटों पर सपा-बसपा उम्मीदवारों को समर्थन दिया था। कांग्रेस को कुल मिलाकर 195200 वोट मिले थे। अर्थात पिछले चुनाव में सपा, बसपा और रालोद के संयुक्त उम्मीदवारों से भाजपा के 1,12,752 मत कम थे। इस बार बसपा अलग है और उसने भी सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। बसपा ने जब 2014 में अपने अलग उम्मीदवार उतारे थे तो सभी आठ सीटों को मिलाकर 14,80,760 वोट मिले थे अर्थात न्यूनतम उसके इतने मत पाने का अनुमान लगाया जा सकता है। सपा, बसपा और रालोद से बसपा के 2014 के पाये वोट को कम कर दिया जाय तो संयुक्त प्रत्याशियों को 28,62,362 मत होते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रथम चरण के आठ सीटों पर भाजपा पुन: 2014 की स्थिति में लौटते हुए परचम लहरा सकती है। इसका कारण है कि इस बार सपा के साथ बसपा जैसी मजबूत पार्टी नहीं है और कांग्रेस के पास वोट बैंक नहीं है। पश्चिम की कई सीटों पर दबदबा रखने वाली रालोद भी इस बार भाजपा के साथ है। पिछली बार मुजफ्फरनगर से रालोद का ही उम्मीदवार खड़ा था। दूसरी तरफ भाजपा ने पीलीभीत से अपने सासंद वरूण गांधी का टिकट काटकर भाजपा ने जितिन प्रसाद को मैदान में उतारा है। यहां भाजपा में भीतरघात होने की संभावना जतायी जा रही है, हालांकि भाजपा ने वरूण गांधी को मना लिया है और उन्होंने अपनी मां का चुनाव प्रचार करने का फैसला किया है।

सहारनपुर से कांग्रेस को मिले थे दो लाख से ज्यादा वोट

सहारनपुर से 2019 में बसपा के हाजी फजलुर रहमान ने भाजपा के राघव लखनपाल को 22,417 मतों से पराजित किया था। इस चुनाव में कुल 11 उम्मीदवार मैदान में थे। बसपा उम्मीदवार को 5,14,139 मत मिले थे। वहीं भाजपा उम्मीदवार राघव को 4,91,722 मत मिले थे। कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद 2,07,068 मत पाकर तीसरे स्थान पर थे। वहीं 4,284 मत नोटा को भी मिले थे। वहीं 2014 में राघव ने कांग्रेस के इमरान मसूद को 65,090 मतों से हराया था।

बिजनौर में भाजपा ने लहराया था परचम

बिजनौर से बसपा के मलूक नागर ने भाजपा के कुंवर भारतेंद्र सिंह को 69,941 मतों से हराया था। मलूक नागर को 5,61,045 मत मिले थे। वहीं भाजपा के कुंवर को 4,91,104 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस के नसीमुद्दीन सिद्दिकी 25,833 मत पाकर तीसरे स्थान पर थे। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव को देखें तो कुंवर भारतेंद्र ने समाजवादी पार्टी के शाहनवाज राणा को 2,05,774 मतों से परास्त किया था। कुंवर को 4,86,913 मत मिले थे। वहीं शानवाज राणा को 2,81,139 मत मिले थे, जबकि बसपा के मालुक नगर को 2,30,124 मत मिले थे। यहां रालोद के जया प्रदा नाहाता ने 24,348 मत पाकर चौथे स्थान पर रहीं थी।

नगीना में बसपा ने मारी थी बाजी

नगीना लोकसभा सीट से बसपा के गिरीश चंद्र ने भाजपा के डा. यशंवत को 1,66,832 मतों से परास्त किया था। वहीं कांग्रेस की ओमवती देवी ने 20,046 मत पाई थीं, जबकि 2014 में भाजपा के यशवंत सिंह ने सपा के यशवीर सिंह को 92,390 मतों से हराया था। वहीं बसपा के गिरीश चंद्र 2,45,685 मत पाकर तीसरे स्थान पर थे।

मुरादाबाद से अपने सीटिंग सासंद को बदलना पड़ा सपा को

मुरादाबाद लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के एसटी हसन ने भाजपा के कुंवर सर्वेश कुमार को 97,878 मतों से हराया था। एसटी हसन 6,49,416 मत पाये थे, जबकि कुंवर सर्वेश 5,51,538 मत पाये थे, जबकि कांग्रेस से राज बब्बर 59,198 मत पाकर तीसरे स्थान पर थे। 2014 में भाजपा के कुंवर सर्वेश ने सपा के एस.टी हसन को 87,504 मतों से परास्त किया था। रामपुर लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी से जीत हासिल की थी, लेकिन उप चुनाव में भाजपा के घनश्याम सिंह लोधी ने सपा के असीम को 42,192 मतों से परास्त कर दिया था। यहां आजम के दबाव में सपा को उम्मीदवार अंतिम समय में बदलने पड़े और एसटी हसन चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/राजेश

   

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