माह-ए-रमजान का अलविदा जुमे की नमाज संपन्न, मस्जिदों में हुई सबसे बड़ी जमात

सैयद हसन

भागलपुर, 05 अप्रैल (हि.स.)। रमजान के पाक माह के अंतिम दिन शुक्रवार को पूरी दुनियां के साथ भागलपुर में भी अलविदा जुमे की नमाज पढ़ी गई। अलविदा जुमा को अरबी में जमात-उल-विदा भी कहा जाता है। अलविदा जुमे की नमाज दोपहर 12 बजकर 30 मिनट से 2 बजकर 2.30 के बीच सभी मस्जिदों में अदा की गई। रमजान के आखिरी जुमे को अलविदा कहा जाता है। ये बातें खानकाह-ए-पीर शाह दमड़िया के सज्जादानशीं सैयद शाह आलम फकरे हसन ने कही। उन्होंने बताया कि आज हर मुसलमान जुमे की नमाज जरूर अदा करता है।

सैयद हसन ने बताया कि जमात उल विदा मुस्लिम पवित्र महीने रमज़ान के अंतिम जुमे के दिन को कहा जाता हैं। हालांकि रमज़ान का पूरा महीना रोज़ों के कारण अपना महत्व रखता है और जुमे के दिन का विशेष रूप से दोपहर के समय नमाज़ के कारण काफी विशेष है पर सप्ताह का यह दिन रमजान के इस पवित्र महीने के अन्त में आ रहा होता है, इसलिए लोग इसे अति- महत्वपूर्ण मानते हैं।

उन्होंने कहा कि रमजान के आख़िरी जुमे के मौक़े पर मस्जिदों में दोपहर को जुमातुल विदा की नमाज़ अदा की जाती है। इस विशेष नमाज़ से पहले मस्जिदों के पेश इमाम जुमातुल-विदा का ख़ुत्बा पढ़ते हैं और नमाज़ के बाद अमन और ख़ुशहाली की दुआएँ माँगी जाती हैं। भारत में अधिकतर दरगाहों से जुड़ी कई एक मस्जिदें हैं, इसलिए लोग वहाँ पर भी नमाज़ पढ़ते हैं। इनमें सबसे खास है दिल्ली का जामा मस्जिद, जहाँ हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं, रमजान के आखिरी जुम्मे का नमाज़ अदा करने।

सैयद हसन ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में जमात-उल-विदा एक खास दिन है। पाक महीने के आखिरी शुक्रवार यानि जुमें के दिन काफी भीड़ होती है। सभी रोजेदार मिलकर खुदा को याद करते हैं। ऐसे धार्मिक सभा का जिक्र कुरान के 62वें अध्याय में भी देखने को मिलता है। रमजान के महीने के दौरान कई लोग पांच वक्त की नमाज तो पढ़ते ही हैं, लेकिन आखिरी जुमें को खास तौर पर नमाज अदा की जाती है। इसमें नमाजी अल्लाह को याद करते हैं और अपने किए हुए बुरे काम को माफ करने की फरियाद करते हैं। इस दौरान सभी नमाजी अपने दोनों हाथों को उठाते हुए अल्लाह-हू-अकबर बोलते हैं।

जमात उल विदा - खुशियों का त्यौहार

सैयद हसन ने कहा कि रमजान के आखिरी जुमें पर ज्यादातर रोजेदार नए कपड़े पहने हुए देखे जा सकते हैं। वे पारंपरिक वेशभूषा में होंगे और नमाज के दौरान वे सिर पर गोल टोपी भी पहनते हैं। सुबह नमाज में शरीक होने से पहले वे घर पर भी कुरान पढ़ते हैं। ऐसा माना जाता है कि जमात-उल-विदा के दिन जो लोग नमाज पढ़कर अल्लाह की इबादत करेंगे और अपना पूरा दिन मस्जिद में बितायेगें, उन्हें अल्लाह की विशेष रहमत और बरकत प्राप्त होगी। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह अपने एक फरिश्ते को मस्जिद में भेजता है, जोकि लोगों की नमाज को सुनता है और उन्हें मनचाहा आशीर्वाद देता है। एक और मान्यता यह भी है कि इस पर्व को लेकर कि इस दिन पैगम्बर मोहम्मद साहब ने अल्लाह की विशेष इबादत की थी।

जमात उल विदा - भाईचारे का पवित्र त्यौहार

सैयद हसन ने बताया कि यही कारण है कि इस शुक्रवार को बाकी के जुमे के दिनों से ज्यादे महत्वपूर्ण बताया गया। पर इन सबसे उपर जमात उल विदा भाईचारे का प्रतीक एवं पर्व है। महीने भर संयम से रोजा रखने के बाद लोग इस दिन को एक दूसरे के साथ मिलकर खुशियों से मनाते हैं। शायद इसलिए कहा जाता है कि खुशियाँ बांटने से बढती है और दुख बांटने से कम होता है।

हिन्दुस्थान समाचार/बिजय

/चंदा

   

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