कैलाश मठ के महामंडलेश्वर स्वामी रामचंद्र गिरी महाराज को दी गई जलसमाधि, होगा संत समागम

महामंडलेश्वर स्वामी रामचंद्र गिरी महाराज की अन्तिम यात्रा:फोटो बच्चा गुप्ता

-मुख्यमंत्री योगी ने भी वाराणसी दौरे में मठ में जाकर महाराज का हाल चाल लिया था

वाराणसी, 15 अप्रैल (हि.स.)। बिरदोपुर महमूरगंज स्थित कैलाश मठ के महामंडलेश्वर स्वामी रामचंद्र गिरी महाराज (104) रविवार को ब्रम्हलीन हो गए। सोमवार को संतश्री के पार्थिव शरीर को केदारघाट पर गंगा के मध्य धारा में जल समाधि दी गई। संत के उत्तराधिकारी महामंडलेश्वर आशुतोषानंद गिरी महाराज की देखरेख में मठ से घाट तक निकली अन्तिम यात्रा में साधु संतों के साथ कैंट के भाजपा विधायक सौरभ श्रीवास्तव, भाजपा महामना मण्डल के अध्यक्ष सोमनाथ यादव आदि भी शामिल हुए। विधायक ने निरंजनी अखाड़े के वयोवृद्ध संत के पार्थिव शरीर को कंधा भी दिया।

कैलाश मठ से जुड़े संतों के अनुसार महामंडलेश्वर स्वामी रामचंद्र गिरी महाराज उम्र जनित बीमारियों के चलते काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उन्होंने तीन साल से अन्न भी त्याग दिया था। विगत दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी प्रवास में कैलाश मठ जाकर महामंडलेश्वर स्वामी रामचंद्र गिरी महाराज का हालचाल लिया था। मुख्यमंत्री ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट 'एक्स' पर इसकी जानकारी दी थी।

महाराज जी की षोडशी 29 अप्रैल को मनाई जाएगी। इसमें संत समागम के साथ संत समागम भी होगा। समागम में पूरे देश से संत महात्मा भाग लेंगे। मूल रूप से बड़ोदरा गुजरात के निवासी महामंडलेश्वर स्वामी रामचंद्र गिरी महाराज को वर्ष 1980 में कैलाश मठ की जिम्मेदारी सौंपी गई। महाराज भौतिक शिक्षा पूरी करके अहमदाबाद गुजरात पुलिस में भी नियुक्त हुए। जहां सर्विस करते हुए, प्रतिदिन प्रात:काल नीलकंठ महादेव असारवा में महन्त स्वामी लक्ष्मण गिरी जी महाराज के सत्संग में जाया करते थे। उनसे प्रभावित होकर अपना सम्पूर्ण जीवन भगवान की भक्ति एवं भक्तों की सेवा के लिए संन्यास लेकर साधना में लग गये। प्रबल वैराग्य और पूर्ण रूप से भगवत शरणागति को चरितार्थ करने के लिए गुजरात छोड़कर मगध में भगवान बुद्ध की बिहार स्थली एवं गुरु गोविन्द सिंह की धरती पटना साहिब पहुंच गए। यहां मोक्षदायिनी गंगा के दक्षिण तट पर लगातार 12 वर्षों तक एक वक्त भिक्षा मांग कर सतत साधना करते रहें। कोई आ जाए तो उसे शुद्ध गीता का ज्ञान देते, अन्यथा मौन रहते, धीरे धीरे उनकी ख्याति फैलने लगी। बाद में महाराज काशी आ गए।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश

   

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