
लखनऊ,12 मार्च (हि.स.)। नो स्मोकिंग डे हर साल मार्च के दूसरे बुधवार को मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य धूम्रपान से होने वाले गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और लोगों को इसे छोड़ने के लिए प्रेरित करना है। इस बार इस दिवस की थीम नो स्मोकिंग डे पर अपना जीवन वापस पाएं निर्धारित की गई है। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने दी।
डा. सूर्यकान्त ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि धूम्रपान से नुकसान ही नुकसान है। धूम्रपान न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए बल्कि हमारे परिवार और समाज के लिए भी हानिकारक है। अगर हम धूम्रपान छोड़ देते हैं तो हम कई गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं। तंबाकू मुक्त जीवन केवल एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए फायदेमंद होता है।
डा. सूर्यकांत ने बताया कि धूम्रपान से कई घातक बीमारियां जैसे फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़, स्ट्रोक, उच्च रक्तचाप और सांस संबंधी अन्य समस्याएं होती हैं। तंबाकू में मौजूद निकोटिन अत्यधिक नशे की लत उत्पन्न करने वाला तत्व है, जो मस्तिष्क में डोपामाइन का स्तर बढ़ाकर व्यक्ति को इसकी आदत डाल देता है। यही कारण है कि एक बार धूम्रपान की लत लग जाने के बाद इसे छोड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है।
सेकंड स्मोकिंग का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों पर
धूम्रपान केवल धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि उनके आसपास के लोगों को भी प्रभावित करता है, जिसे 'पैसिव स्मोकिंग' कहा जाता है। पैसिव स्मोकिंग के कारण नवजात शिशुओं, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। सेकंड स्मोकिंग का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों और गर्भवती पर पड़ता है, क्योंकि वह शुरुआत से ही धुएं के घेरे में आ जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में तंबाकू सेवन के कारण हर साल लगभग 80 लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। इनमें 70 लाख से अधिक लोग सीधे धूम्रपान करने की वजह से और बाकी 12 लाख लोग परोक्ष रूप से तंबाकू के धुएं के संपर्क में आने से प्रभावित होते हैं। भारत में भी हर साल लगभग 35 लाख लोग तंबाकू से जुड़ी बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / बृजनंदन