राम तक पहुंचाती है चरित्र की सीढ़ी

मीरजापुर, 20 मार्च (हि.स.)। ग्राम सभा तिलठी में आयोजित राम कथा मेंदा वृदावन धाम से आईं कथाव्यास राधिका चतुर्वेदी ने गुरुवार को जब रामचरितमानस के गूढ़ अर्थ को समझाया, तो पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उन्होंने श्रोताओं से सवाल किया—आखिर इस ग्रंथ का नाम 'रामचरितमानस' ही क्यों पड़ा? फिर खुद ही उत्तर दिया, जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया।

उन्होंने बताया कि श्री + राम + चरित + मानस का गहरा अर्थ है—ऊपर वाले राम (परमात्मा) और नीचे वाले मानस (मनुष्य) के बीच चरित्र की कड़ी होती है। यदि कोई मनुष्य राम से मिलना चाहता है, तो उसे चरित्र रूपी सीढ़ी पार करनी होगी। ठीक वैसे ही, जैसे स्वयं भगवान राम को भी अपनी महान गाथा को चरित्रवान बनाकर संसार के लिए उदाहरण प्रस्तुत करना पड़ा।

इस दौरान रामचरितमानस की महिमा से भरी यह व्याख्या सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे, और पूरे पंडाल में जय श्रीराम के उद्घोष गूंज उठे। उनकी इन ओजस्वी वाणियों से उपस्थित श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए। समिति के अध्यक्ष रुद्रप्रसाद उपाध्याय, मंच संचालक राजनाथ चौबे, आशुतोष उपाध्याय, द्वारिकाधीश शास्त्री, गोलू पुजारी, बाबूलाल, आदर्श समेत भारी संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे।

भारत में होती है चरित्र की पूजा

राधिका चतुर्वेदी ने कहा कि हमारा देश चित्र प्रधान नहीं, बल्कि चरित्र प्रधान है। भारत की परंपरा में किसी व्यक्ति के चित्र की पूजा नहीं होती, बल्कि उसके चरित्र को पूजा जाता है। और जब कोई व्यक्ति श्रीराम के आदर्शों पर चलता है, तो उसका चरित्र स्वयं उसे पूजनीय बना देता है।

हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा

   

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