पेरिस समझौते से अमेरिका का बाहर जाना अप्रत्याशित नहींः अरुणाभा घोष
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- Jan 21, 2025
नई दिल्ली, 21 जनवरी (हि.स.)। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के पहले दिन पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को वापस निकालने का आदेश दिया। यह समझौता ग्लोबल वार्मिंग को कम करने से संबंधित था। इसको लेकर मंगलवार को काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. अरुणाभा घोष ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका को पेरिस समझौते से दोबारा अलग करने का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का फैसला पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं था। हालांकि, इसने दो तरह की अनिश्चितता पैदा कर दी है।
डॉ. घोष ने कहा कि पहली अनिश्चितता, क्या अमेरिका में सरकारी और कॉर्पोरेट गतिविधियां स्वच्छ तकनीक में निवेश और नवाचार पर और अधिक ध्यान देंगे? दूसरा, उत्सर्जन कटौती में मौजूद अंतर को भरने के लिए अन्य ऐतिहासिक उत्सर्जक किस तरह से आगे आएंगे? क्लाइमेट एक्शन का नेतृत्व करना सभी बड़े ऐतिहासिक उत्सर्जकों की नैतिक और आर्थिक जिम्मेदारी है, न कि इससे पीछे हटना।
इस बीच भारत को प्रौद्योगिकी, निवेश, औद्योगिक विकास, हरित आजीविका और अर्थव्यवस्था के लिए अत्यधिक लचीलेपन के रणनीतिक अवसरों का लाभ उठाने के लिए क्लाइमेट एक्शन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर मजबूती से टिके रहना चाहिए। जलवायु जोखिम अब व्यापक आर्थिक जोखिम है-और जलवायु नीति अब औद्योगिक नीति है। एक तरफ जलवायु से संबंधित झटकों के प्रति अनुकूलन, लचीलेपन और बीमा को लेकर सार्थक साझेदारियां करने और दूसरी तरफ स्वच्छ तकनीक के विकास, विनिर्माण और आपूर्ति शृंखलाओं के विकास और विविधीकरण के अवसर अभी भी मौजूद हैं।
उल्लेखनीय है कि पेरिस समझौता एक अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन संधि है। इसके तहत 200 देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए मिलकर काम करने पर सहमति जताई है। पेरिस समझौता 2015 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित जलवायु शिखर सम्मेलन में हुआ था। इस शिखर सम्मेलन में 190 से अधिक देश एकत्रित हुए थे। समझौता में दुनियाभर में तापमान में होने वाली वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस या कम से कम 1.5 डिग्री तक सीमित रखने की बात की गई थी।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी