'खाकी' पर दाग लगा रहे मनवाल चौकी के पुलिसकर्मी

स्टेट समाचार जम्मू। (मोहित जम्वाल) : 'खाकी' वर्दी आम लोगों के बीच एक ऐसा विश्वास है जो हर अपराध से छुटकारा दिलाने के लिए सरकार ने पुलिसकर्मियों को पहनाई है, लेकिन अब कुछ पुलिसकर्मियों के कारण यही वर्दी दागदार होती नजर आ रही है।  मनवाल पुलिस चौकी भी एक ऐसा अड्डा बन चुकी है जहां पुलिसकर्मी खाकी की आड़ में अपनी जेब भरने का धंधा चला रहे हैं। बीते दिनों भी मनवाल पुलिस चौकी का एक कांस्टेबल रिश्वत लेते पकड़ा गया था जिसे हालांकि विभाग ने सस्पेंड कर दिया लेकिन इसके बावजूद इस पुलिस चौकी में तैनात पुलिसकर्मियों के रंगढंग नहीं बदले हैं और वे अवैध रूप से रकम लेकर अपने इलाके में अपराधियों, नशा व पशु तस्करों को संरक्षण दे रहे हैं, इस तरह के आरोप इसी क्षेत्र के लोग लगा रहे हैं। ताजा मामले में स्थानीय लोगों ने पशु तस्करों को पकड़ा जो मवेशी लेकर जा रहे थे। उन्होंने इसकी पुलिस को सूचना भी दी लेकिन पुलिस समय पर मौके पर नहीं पहुंची जबकि घटना स्थल से पुलिस चौकी मात्र पांच मिनट की दूरी पर थी। लोगों का आरोप है कि पुलिस करीब आधा घंटा बाद वहां पहुंची। पुलिस कर्मियों की इस लापरवाही भरी कार्रवाई से स्थानीय लोगों में काफी रोष है। हैरत की बात तो यह है कि स्थानीय लोगों ने पुलिस को इत्तिला भी दी लेकिन फिर भी पुलिस ने मौके पर जाना मुनासिब नहीं समझा। जब स्टेट समाचार के क्राइम रिपोर्टर ने पहल करके नगरोटा एसडीपीओ को फोन किया तब कहीं जाकर पुलिस आधा घंटा बाद घटना स्थल पर पहुंच पाई। इस घटना में पांच गौवंश स्थानीय लोगों द्वारा बचाए गए जिनमें एक बैल घायल अवस्था में था। हालांकि इस मामले में महिला सहित तीन तस्करों को गिरफ्तार किया गया लेकिन मामला एक के खिलाफ ही दर्ज किया गया है जो कि सांबा का रहने वाला है।  पुलिस की यह लेटलतीफी उनकी कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल छोड़ जाती है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यहां के पुलिसकर्मी ही पशु व नशा तस्करी को जानबूझकर नजरअंदाज कर रहे हैं क्योंकि इसके ऐवज में उनसे मोटी राशि वसूल करते हैं। क्या जम्मू के पुलिस आला अधिकारी इस पर कोई ठोस कार्रवाई कर 'खाकी' को दागदार होने से बचाएंगे?  ऐसा क्यों होता है? जम्मू-कश्मीर में पशु व नशा तस्करी कोई नई बात नहीं है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि अधिकांश मामलों में पुलिस तथाकथित रूप से सक्रिय कार्रवाई कर पशुओं को तो बचा लेती है लेकिन तस्कर अक्सर फरार हो जाते हैं, ऐसा क्यों? अगर स्थानीय लोगों की मानें तो तस्करों की पुलिस के साथ सांठगांठ होती है और वे पकड़े जाने पर पुलिसकर्मियों को रकम देकर छूट जाते हैं, जिसे बाद में पुलिस 'मौके का फायदा' उठाकर तस्करों के फरार होने के रूप में प्रचारित और प्रसारित करती है।  पुलिसकर्मियों की इस तरह की अपराधों को प्रश्रय देने वाली कार्यशैली स्थानीय लोगों को नागवार गुजर रही है जिस कारण वे खुद तस्करों पर लगाम लगाने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं, लेकिन कितनी विडंबना की बात है कि इसके बावजूद पुलिस अपने रवैये में परिवर्तन करने को तैयार नहीं है।

   

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