उत्तराखंड उच्च न्यायालय पर पूर्व सीएम और राज्यपाल कोश्यारी ने सीएम धामी को लिखा पत्र

-चेताया-न्यायालय ऐसे निर्णय लेने लगेंगे तो सरकारों को दिये गये अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप की सम्भावना बढ़ जायेगी

नैनीताल, 14 मई (हि.स.)। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ के द्वारा देश के राष्ट्रपति की अधिसूचना के बावजूद नैनीताल से उच्च न्यायालय को अन्यत्र स्थानांतरित कराना आवश्यक बताने पर पूर्व राज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को पत्र लिखा है। पत्र में कोश्यारी ने बिंदुवार अपनी राय रखते हुये सीएम धामी से केन्द्र सरकार या सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से शीघ्रतिशीघ्र इस समस्या का समाधान निकालने का अनुरोध किया है।

कोश्यारी ने पत्र में लिखा है कि हाल में उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा उच्च न्यायालय को नैनीताल से अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिए नये स्थान ढूंढने के निर्देश दिये गये है, इस सम्बन्ध में मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया निम्न बिन्दुओं पर प्राथमिकता से विचार करने का कष्ट करें।

बिन्दु संख्या-1: उत्तराखण्ड (उत्तरांचल) राज्य बनाते समय विस्तृत विचार विमर्श के बाद देहरादून को तात्कालिक राजधानी एवं नैनीताल में उच्च न्यायालय बनाने का निर्णय लिया गया।

बिन्दु संख्या-2: नैनीताल में अंग्रेजों के समय से ही राजभवन, सचिवालय आदि बनाये गये हैं, यह उत्तर-प्रदेश की गर्मियों की राजधानी के रूप में प्रयुक्त होता रहा है, किन्तु नये राज्य में नैनीताल को राजधानी बनाने से मंत्रियाें, विशिष्टजनों की अधिकता से स्थानीय पर्यटन व जनजीवन को बाधा पहुंचने की सम्भावना को देखते हुए यहां क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखकर हाईकोर्ट की स्थापना की गई।

बिन्दु संख्या-3: मैं कानून का विद्यार्थी नही हूँ किन्तु लम्बे समय तक संसद व विधान मंडल के सदस्य रहने के कारण मेरा कहना है कि न्यायालय का सम्मान रखते हुए भी राज्य की कौन संस्था, विभाग कहां रहे इसका निर्णय संसद या विधान मंडल ही करते आये है। न्यायालय इस सम्बन्ध में निर्णय लेने लगेंगे तो पीआईएल कर्ता कल को किसी भी विभाग जिला, तहसील आदि की मांग को लेकर न्यायालय पहुंच जायेंगे व इससें संविधान द्वारा केंद्र या प्रदेश सरकारों को दिये गये अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप की सम्भावना बढ़ जायेगी।

बिन्दु संख्या-4 : जहां तक नैनीताल हाईकोर्ट के अन्यत्र स्थानांतरित करने का प्रश्न है मेरी जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार इससे पहले से ही सहमत है।

बिन्दु संख्या-5: जैसा कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्देश में स्वयं कहा है कि (निर्देश संख्या 13 एवं 14 डी) उच्च न्यायालय की फुल बैंच ने गौलापार हल्द्वानी में कोर्ट को स्थापित करने की प्रक्रिया पर सहमति दी थी।

बिन्दु संख्या-6: शासन-प्रशासन द्वारा इस प्रक्रिया को आगे गढाते हुए गौलापर में लगभग 26 बीघा जमीन का चयन कर वन विभाग से अनापत्ति हेतु प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई है, तथा केंद्रीय वन एव पर्यावरण विभाग से इस पर विचार कर 26 बीघे जमीन को अधिक बताते हुए इसे कुछ कम करने के लिए प्रदेश सरकार को निर्देशित किया गया है। इसमें क्षतिपूर्ति के लिए वन विभाग को अन्यत्र वन लगाने हेतु जमीन का भी चयन कर लिया गया है ऐसे में अब अन्यत्र वैकल्पिक स्थान ढूंढने हेतु दिये गये निर्देश से क्षेत्र में असन्तोष फैलने की सम्भावना से नकारा नहीं जा सकता है।

बिन्दु संख्या-7ः वैसे भी उक्त यानी गौलापार का प्रस्तावित स्थान रौखड़ के रूप में अभिलेखों में दर्शाया गया है।

बिन्दु संख्या-8: उक्त स्थान में स्थित अधिकांश पेड़ केवल 4 से 6 इंच मोटाई के ही हैं।

बिन्दु संख्या-9: न्यायालय ने अपने आदेश में स्वयं ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा है कि अधिवक्ताओं को वर्चुअली यानी आभासी या आन लाईन बहस करने का अभ्यास डालना चाहिए (आदेश क्रमांक-12)।

बिन्दु संख्या-10: न्यायालय ने नैनीताल में आसपास चिकित्सा आदि की उचित व्यवस्था नही होने का जिक्र किया है। गौलापार हाई कोर्ट बन जाने से हल्द्वानी में सभी प्रकार की सरकारी व निजी अस्पतालों के माध्यम से चिकित्सा की उचित सुविधा उपलब्ध हो जायेगी। यहां से राष्ट्रीय राजमार्ग बन जाने से 20 या 25 मिनट में पंतनगर हवाई अड्डा भी पहुंचा जा सकता है।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. नवीन जोशी/रामानुज

   

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