खड़ाऊ के महत्व को देखते हुए आज भी साधु संत इसे धारण करते है : आचार्य प्रभाकर

सहरसा-चरण पादुका

सहरसा,25 मई (हि.स.)। पूर्णिमा के तहत चरण पादुका यात्रा बुद्ध पूर्णिमा को आयोजित किया गया। यह पदयात्रा फरकीया परगना,अंचल सिमरी बख्तियारपुर अंतर्गत साधना स्थल खजुरी से चरण पादुका यात्रा प्रातः आरंभ हुई जो दोपहर बाद बैकुंठ धाम परसरमा कांवर मुख्य पुजारी दिनेश ओझा बाबा को समर्पित किया गया।

पुजारी बाबा ने योग साधक सेवक प्रभाकर को प्रसाद स्वरूप पाग पहनाकर सम्मान किया।श्री ओझा बाबा ने कहा आप बैसाख के चिलचिलाती धूप में लक्ष्मीनाथ गोसांई जी का कांवर स्वरूप पादुका 32 किलोमीटर दूर से लाये हैं।जिस कारण इस चिलचिलाती धूप में,ऐसे साधक को सम्मान मिथिला में होना ही चाहिए।साधक ने कहा बाबा यह सम्मान केवल मेरा हीं नहीं अपितु समस्त गोसांई जी के भक्तों का सम्मान है। बड़े बुजूर्ग बताते हैं की आज से पचास-साठ साल पहले सभी पुरुष खराऊं ही पहनते थे,क्योंकि उस समय चप्पल जूता सक्षम व्यक्ति धनी मनी लोगों के पास हीं होता था।गरीब लोग के पास जूते चप्पल के पैसे नहीं थे। इसीलिए हर कोई खराऊं धारण करते थे।

वर्तमान समय में खराम पहनना काफी मंहगा है।एक व्यक्ति को साल भर में चार जोड़ी खराऊं चाहिए।जिसकी कीम्मत लगभग 12 सौ रुपया है।इतने दाम में तो पूरे परिवार का चप्पल हो जाएगा।अभी के दौर में तो खराऊं भरत जी के पादुका या फिर गोसांई जी या अन्य देवता को चढ़ाने तक ही सीमित है।कुछ साधु संत आज भी इसे धारण करते हैं जो खराऊं के महत्व को समझते हैं।सेवक ने कहा अनाथों के नाथ हैं लक्ष्मीनाथ गोसाई। उन्हीं के प्रेरणा व आशीर्वाद से 2016 से नरक निवारण चतुर्दशी को तथा कोरोना काल में सालों भर तक दोनों पक्ष एकादशी को चरण पादुका यात्रा निर्विघ्न चलता रहा।जो अभी नियम पूर्वक प्रत्येक पूर्णिमा को पादुका यात्रा की जाती है।यात्रा के दौरान मार्ग में प्रायः सभी मंदिर के पूजारी भक्तों का दर्शन भी होता है। रास्ते में गोसांई जी के भजन कीर्तन से गुंजायमान रहा।

हिन्दुस्थान समाचार/अजय/गोविन्द

   

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