फसल में अच्छी पैदावार के लिए गर्मी में खेतों की करें गहरी जुताई : मृदा वैज्ञानिक

-गर्मी की गहरी जुताई हेतु कृषकों को दिया गया प्रशिक्षण

कानपुर, 28 मई (हि.स.)। रवी की सभी प्रकार की फसलें किसानों के घरों पर पहुंच चुकी हैं और खेत खाली हो गये हैं। जिन खेतों में जायद की फसलें नहीं खड़ी उन खेतों पर गर्मी के इन दिनों में गहरी जुताई करें, ताकि अगली फसल में अच्छी पैदावार हो सके। गर्मी में गहरी जुताई होने के बाद खाली पड़े खेत अगली फसल में बेहतर उत्पादन देते हैं। यह बातें मंगलवार को मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने किसानों को गहरी जुताई के लाभ बताते हुए कहीं।

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर द्वारा ग्राम औरंगपुर गहदेवा में कृषकों को गर्मी की गहरी जुताई विषय पर एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण आयोजित किया गया। इस अवसर पर मृदा वैज्ञानिक डा.खलील ख़ान ने बताया कि ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई अपने खाली खेतों में अवश्य करें। डॉक्टर खान ने बताया कि आगामी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए रबी फसल की कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई कर ग्रीष्म ऋतु में खेत को खाली रखना लाभप्रद होता है। उन्होंने कहा कि जहां तक संभव हो सके किसान भाई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दें। खाली खेत में गहरी जुताई मई माह में अवश्य कर लें। इस गहरी जुताई से जो ढेला बनते हैं वे धीरे-धीरे हवा व बरसात के पानी से टूटते रहते हैं। साथ ही जुताई से मिट्टी की सतह पर पड़ी फसल अवशेष की पत्तियां पौधों की जड़ें एवं खेत में उगे हुए खरपतवार आदि नीचे तक जाते हैं। जो सड़ने के बाद खेत की मिट्टी में कार्बनिक खादों/जीवांश पदार्थ की मात्रा में बढ़ोतरी करते हैं। इससे भूमि में वायु संचार एवं जल धारण क्षमता बढ़ जाती है।

दो-तीन वर्ष में एक बार अवश्य करें गहरी जुताई

आगे बताया कि गहरी जुताई से गर्मी में तेज धूप के कारण कीड़े मकोड़े एवं बीमारियों के जीवाणु खत्म हो जाते हैं। ग्रीष्मकालीन जुताई से जलवायु का प्रभाव सुचारु रुप से मिट्टी में होने वाली प्रक्रियाओं पर पड़ता है और वायु तथा सूर्य के प्रकाश की सहायता से मिट्टी में विद्यमान खनिज अधिक सुगमता से पौधे भोजन के रूप में ले लेते हैं। इस अवसर पर केन्द्र के प्रभारी डा.अजय कुमार सिंह ने बताया कि किसान भाइयों को गर्मी की जुताई दो-तीन वर्ष में एक बार अवश्य कर देनी चाहिए। डॉक्टर सिंह ने बताया कि अनुसधान के परिणामों में यह पाया गया है कि गर्मी की जुताई से भूमि कटाव में 66.5 प्रतिशत तक की कमी आई है। पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. शशिकांत पशुओं में होने वाली बीमारियों एवं उनके प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। गृह वैज्ञानिक डा निमिषा अवस्थी ने लघु उद्योग के बारे में जानकारी दी। जबकि गौरव शुक्ला ने प्रशिक्षण कार्यक्रम सफल बनाने में विशेष सहयोग प्रदान किया।

हिन्दुस्थान समाचार/अजय/बृजनंदन

   

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