भीख मांगने वालों को सीख देते दिव्यांग कृष्णपाल, बेच रहे हैं मंदिर में प्रसाद

गोपेश्वर, 20 जून (हि.स.)। श्री बदरीनाथ धाम में दोनों आंखों से दिव्यांग झारखंड के दुमका निवासी 35 वर्षीय कृष्णपाल वर्ष 2007 से धाम में फेरी लगाकर, डलिया गले में डालकर भगवान बदरीनाथ धाम का प्रसाद, पूजा सामग्री, सिंदूर आदि बेचते हैं। इसी से बदरीनाथ में अकेले रहकर अपना जीवन यापन करते हैं। वह कहते हैं कि वह जन्मांध हैं इसका उन्हें कुछ भी मलाल नहीं है।

अक्सर यह देखा जाता है कि नेत्रहीन होने पर लोग भीख मांगकर या किसी के दरवाजे पर बैठकर अपना जीवन यापन करते हैं, लेकिन दिव्यांग कृष्ण पाल प्रसाद बेचकर अपना जीन यापन कर रहे हैं। कृष्ण पाल यात्राकाल में मंदिर परिसर के बाहर तथा दर्शन पंक्ति में प्रसाद, सिंदूर, पूजा सामग्री बेचते हैं और डिजिटल पेमेंट भी स्वीकार करते हैं। उन्होंने अपने स्वाभिमान से जीने का निश्चय किया है और भगवान बदरीविशाल के प्रसाद को बेचकर अपने जीवन को यापन किया है।

दिव्यांग कृष्णपाल की उम्र 35 वर्ष है। वह कहते हैं कि वर्ष 2007 में पहली बार किसी तरह अकेले जिला दुमका से श्री बदरीनाथ धाम पहुंचे। श्री बदरीनाथ मंदिर के सिंह द्वार पर माथा टेका। वह कुछ दिन बदरीनाथ धाम में घूमे-फिरे तो लोगों ने दिव्यांगता के कारण उन्हें दानस्वरूप पैसे देने शुरू किये। एक-दो दिन भीख के पैसे लेने के बाद उन्हें बहुत आत्मग्लानि हुई। तब उन्होंने निश्चय किया कि वह कभी न तो भीख मांगेंगे नहीं किसी की दान में दी हुई वस्तु स्वीकारेंगे। कुछ ऐसा करेंगे जिससे लोग उन्हें दया का पात्र न समझे। इस तरह वह स्वाभिमान से जी सकें। उन्होंने निश्चय किया कि वह भगवान बदरी विशाल का प्रसाद बेच कर जीवन यापन करेंगे। वह प्रसाद बेचने के बाद क्यूआर कोड से डिजिटल पेमेंट भी स्वीकारते है। उनका कहना है कोई भी यात्री उन्हें ठगता नहीं है। श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद वह झारखंड चले जाते हैं।

श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति मीडिया प्रभारी डाॅ. हरीश गौड़ ने बताया कि दिव्यांग कृष्ण पाल बहुत स्वाभिमानी है। उन्हें अपने दिव्यांग होने का कोई दुख नहीं है लेकिन उनको इस बात की टीस है कि अच्छे खासे लोग तीर्थस्थलों, सड़कों पर भीख मांगते फिरते हैं तथा काम नहीं करना चाहते।

हिन्दुस्थान समाचार/जगदीश/सत्यवान/वीरेन्द्र

   

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