हमीरपुर के बांके बिहारी मंदिर में अंग्रेजों के भागने के बाद क्रांतिकारियों ने फहराया था तिरंगा

- पूरे क्षेत्र में आजादी के जश्न में घर-घर जलाए गए थे दीपक

हमीरपुर, 26 जनवरी (हि.स.)। हमीरपुर जिले में अंग्रेजों को भगाने के लिए यहां एक मंदिर में क्रांतिकारियों ने पंचायत कर हुंकार भरी थी। इसी मंदिर के तहखाने में अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए एक समाचार पत्र भी छपता था। खास बात तो यह है कि इस मंदिर में अंग्रेजों से बचने के लिए तमाम शीर्ष नेता भी शरण लेते थे। अंग्रेजों के भारत छोड़ने पर यहां मंदिर के सामने पूरे गांव के लोगों ने सामूहिक राष्ट्रगान किया था। कांग्रेस का पहला अधिवेशन इसी मंदिर में हुआ था जिसमें जवाहरलाल नेहरू समेत तमाम बड़े नेताओं ने सम्मेलन मे चिंतन और मंथन किया था।

जिले के मुस्करा थाना क्षेत्र के गहरौली गांव में बांके बिहारी जू मंदिर स्थित है। इसका इतिहास भी सैकड़ों साल पुराना है। मंदिर में पहले अवध बिहारी महंत होते थे जिनके चमत्कार को आज भी गांव के लोग याद करते हैं। मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि जिले का यहीं एक मंदिर है जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अतीत को संजोए हैं। मंदिर की देखरेख करने वाले विमल चन्द्र गुरुदेव ने बताया कि इस मंदिर को सरकारी स्तर पर संवारने के लिए कोई मदद नहीं मिली है लेकिन स्वयं के खर्च से मंदिर को नए आयाम दिए गए है।

अंग्रेजों के वीरभूमि छोड़ने पर गांव में सेनानियों ने फहराया था तिंरगा

गांव के बुजुर्ग विमल चन्द्र गुरुदेव ने बताया कि अंग्रेजों के खिलाफ यहां गांव के एतिहासिक बांके बिहारी मंदिर के तहखाने में सेनानियों ने रणनीति बनाई थी। अंग्रेजों को भगाने के लिए बड़ा आन्दोलन चला था जिसके बाद अंग्रेज अफसर भागने को मजबूर हो गए थे। 96 वर्षीय चन्द्रशेखर शुक्ला व जयनारायण गुरुदेव ने बताया कि अंग्रेजों को भागने के बांद आजादी का जश्न मनाया गया था। तिरंगा फहराकर घर-घर दीये भी जलाए गए थे। गणतंत्र दिवस पर यहां मंदिर में भजन कीर्तन आयोजित किए गए है।

भारतीय शिल्प कला का अनूठा उदाहरण है बांके बिहारी मंदिर

धनीराम गुरुदेव ने अपने अनुज पं.उधवराज के पुत्र प्रागदत्त के जन्मोत्सव पर इस मंदिर का निर्माण 1872 में कराया था। चूना, मिट्टी और कंकरीले पत्थरों से निर्मित मंदिर में भारतीय शिल्प कला का अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है। मंदिर की छत से सटे कंगूरे, प्रमुख द्वार से लेकर बांके बिहारी महाराज के विराजमान स्थल तक फूल पत्ती, तैल चित्र और सनातनी देवी देवताओं की प्रतिमायें अंकित है। गहरौली गांव के भगवान का श्रृंगार सोने और चांदी से निर्मित है। मंदिर का शिखर 50 मीटर ऊंचा है। जिसे आसपास के पच्चीस गांवों में इसे देखा जा सकता है।

अंग्रेजी हुकूमत में मंदिर में शीर्ष राजनीति के नेताओं ने ली थी शरण

बांके बिहारी जू देव मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने शनिवार को बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों ने इस मंदिर से ही अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोला था। मंदिर के तहखाने में बुन्देलखंड केसरी नाम का अखबार टाइप करके निकाला जाता था। क्रांतिकारी पंडित मन्नीलाल गुरुदेव के नेतृत्व में बैजनाथ पाण्डेय, नत्थू वर्मा, जगरूप सिंह इस अखबार को चोरी छिपे बांटते थे। ये अखबार भी अंग्रेजों के खिलाफ जनता को लामबंद करने के लिये प्रेरित करता था। क्रांतिकारी अंग्रेजों से बचने के लिये सुरंग के जरिये मंदिर में आते जाते थे।

मंदिर के लम्बी सुरंग के सहारे बारातियों ने बचायी थी जान

मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि सौ साल पहले गहरौली गांव में प्रजापति बिरादरी के घर बरात आयी थी। बारात में किसी बात को लेकर विवाद हो गया तो सैकड़ों बारातियों के लिये पंडित मन्नीलाल गुरुदेव ने सुरंग से भागने का रास्ता दिखाया था। कन्या पक्ष के लोगों के हल्ला बोलने पर दूल्हा सहित सभी बराती मंदिर के सुरंग में घुस गये थे फिर सुरंग के सहारे जान बचाकर घर भागे थे। पुजारी ने बताया कि मंदिर में सुरंग का आखिरी छोर गांव के बाहर खत्म होता है। मौजूदा में इस मंदिर के तहखाने और सुरंग को फिलहाल बंद कराया जा चुका है।

बांके बिहारी के चमत्कार से आग में खाक होने से बचा था गांव

मंदिर के पुजारी ने बताया कि सौ साल पहले भीषण तूफान आया था फिर अचानक गांव में दो घरों में आग लग गयी थी। तूफान के कारण आग विकराल हो गयी तब मंदिर के महंत अवध बिहारी ने बांके बिहारी का नाम लेकर आसमान की तरफ हाथ उठाया तो तुरंत बारिश होने लगी थी। बारिश के कारण आग बुझ गयी थी। उन्होंने बताया कि महंत ने बांके बिहारी का नाम लेकर भंडारा किया था जिसमें पच्चीस गांव के लोगों ने भोजन किया था। किसी ने कोई मदद भी नहीं की थी लेकिन जैसे ही महंत जिस चीज में हाथ लगाते वह उपलब्ध हो जाता था।

मंदिर में कांग्रेस के पहले अधिवेशन में आये थे जवाहरलाल नेहरू

मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि वर्ष 1937 में कांग्रेस का पहला अधिवेशन इसी मंदिर के परिसर में हुआ था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू औैर पूर्व मुख्यमंत्री नारायन दत्त तिवारी सहित तमाम नेता आये थे। इस अधिवेशन में इन्दिरा गांधी भी नेहरू के साथ आयी थी। उस समय उनकी उम्र सिर्फ दस साल की थी। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिये राष्ट्र की ओर से पार्टी के जिलास्तरीय अधिड्ढवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू व इन्दिरा ने ताम्रपत्र दिया था।

हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/मोहित

   

सम्बंधित खबर